‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा ! को करि तर्क बढ़ावै साखा’ : श्वेता दीप्ति
डॉ श्वेता दीप्ति, हिमालिनी अंक जून, (सम्पादकीय)
नियति जो तय करती है होता वही है । भारत की बढ़ती शाख ने मोदी सरकार के खिलाफÞ विश्व स्तर पर एक माहौल बना दिया था । किसी भी हाल में भारत का विपक्ष और विश्व की कुछ संस्था मोदी की वापसी को रोकना चाह रहा था । किन्तु यह हो नहीं पाया । हुआ वही जो नियति ने तय किया था ।
सात जून को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के नेता चुने गये नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बन चुके हैं । हालांकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा में बहुमत से चूक गयी, लेकिन एनडीए, संख्या बल और अपने सहयोगियों के बीच राजनीतिक ताल–मेल के लिहाज से, तीसरे कार्यकाल के लिए भलीभांति तैयार है । एनडीए की बैठक में मुख्य सहयोगियों ने मोदी की तारीफ के पुल बांध दिये और बदले में उन्होंने भी मेल–मिलाप का संदेश देने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उन्होंने अपनी अगली सरकार के सभी फैसलों में सर्वसम्मति की कोशिश का वादा किया और ‘सर्व पंथ समभाव’ के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर दिया ।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने जा रहे तेलुगु देशम पार्टी के नेता एन. चंद्रबाबू नायडू, और बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ बने रहने में कोई अस्पष्टता नहीं दिखायी । दोनों सहयोगी दल २०२४ का चुनाव जीतने वाले चुनाव–पूर्व गठबंधन का हिस्सा हैं और उनके पास गठबंधन में भाजपा के बाद सर्वाधिक संख्या है । गठबंधन सामंजस्य के साथ शुरुआत करने जा रहा है और इसे इसी तरह आगे ले जाने के लिए सभी दलों द्वारा नेतृत्व और लचीले रवैये की जरूरत होगी । हालांकि सभी सहयोगी दलों ने मोदी को नये जनादेश के प्रति अपना सम्मान जाहिर किया, लेकिन यह स्वाभाविक ही है कि गठबंधन से जुड़ी शर्तें भी लागू होंगी ।
मोदी का दूसरा कार्यकाल ‘सबका विश्वास’ हासिल करने के वादे के साथ शुरू हुआ था । दूसरे कार्यकाल में मोदी के लिए कोई संख्यात्मक नियंत्रण नहीं था, लेकिन तीसरे कार्यकाल के दौरान सरकार का बचे रहना गैर–भाजपा सहयोगी दलों पर निर्भर करेगा, जो समझौतों को जरूरी बना देगा । लोकतांत्रिक भावना की परीक्षा सत्तारूढ़ गठबंधन के बाहर जाकर आम सहमति बनाने में होगी । भले ही भाजपा को आम चुनाव में मध्य के मजबूत गढ़ों में झटका लगा हो, लेकिन उसने दक्षिण और पूर्वोत्तर में नये क्षेत्रों व समुदायों के बीच अपना विस्तार किया है– इस बिंदु का उल्लेख मोदी ने एनडीए की बैठक के दौरान अपने भाषण में किया । विपक्ष भी संसद में ज्यादा मजबूत उपस्थिति के साथ सामने आया है । चुनौतियाँ है किन्तु भारत की जनता को एक मजबूत नेतृत्व मिला है जो भारत के विकास की राह को निःसन्देह प्रशस्त करेगा ।
जो भी हो ‘अंत भला तो सब भला’ ।