जीवन के तमाम पहलू समाए हुए हैं ‘ठहरे हुए लम्हे’ में : पंकज कुमार पांडे
बसंत चौधरी, पड़ोसी देश नेपाल के एक बड़े और प्रसिद्ध कारोबारी होने के साथ ही समाजसेवी हैं। यूँ तो व्यापार और साहित्य का आपस में अधिक मेल नहीं माना जाता, लेकिन बसंत चौधरी ने व्यापार के साथ-साथ साहित्य की नब्ज़ भी बखूबी पकड़ रखी है। न केवल नेपाल में, बल्कि अन्य देशों में भी उनके ढेरों प्रशंसक हैं। वे अब तक नेपाली और हिंदी में सत्रह पुस्तकें लिख चुके हैं। हाल ही में, नेपाल उर्दू अकादमी के सहयोग से उनका पहला ग़ज़ल संग्रह “ठहरे हुए लम्हे” उर्दू और हिंदी में प्रकाशित हुआ है, जो अब ग़ज़लप्रेमियों के हाथों में पहुँच चुका है।
‘ठहरे हुए लम्हे’ प्रसिद्ध कवि और शायर बसन्त चौधरी तख़ल्लुस ‘बसन्त सागर’ का एक बेहतरीन ग़ज़ल संकलन है, जिसमें उन्होंने प्रेम, विरह, समाज, राजनीति और जीवन के गूढ़ अनुभवों को संजोया है। यह संकलन केवल शेर-ओ-शायरी का संकलन नहीं, बल्कि एक दार्शनिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करता है, जिसमें पाठकों को हर पंक्ति में एक नई सोच, एक नई दिशा और एक नई संवेदना का अनुभव होता है।
इस ग़ज़ल संकलन को पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे लेखक ने जीवन के हर रंग को अपनी लेखनी में उकेर दिया हो। कभी यह प्यार की मासूमियत को छूता है, तो कभी समाज की सच्चाइयों पर गहरी चोट करता है। यह संग्रह शायर की भावनात्मक गहराई, काव्यात्मक सौंदर्य और अनुभवों की परिपक्वता का बेहतरीन उदाहरण है।

“ठहरे हुए लम्हे” की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विषयगत विविधता है। हर शेर में एक नई दुनिया बसती है। ग़ज़लें केवल प्रेम के दायरे में नहीं सिमटतीं, बल्कि समाज, राजनीति, जीवन और दर्शन तक विस्तृत होती हैं।
प्रेम और विरह, शायरी की आत्मा माने जाते हैं, और इस संकलन में भी प्रेम अपनी पूरी शिद्दत के साथ मौजूद है। लेकिन यह प्रेम केवल सतही नहीं है, बल्कि इसमें गहराई और दर्शन की झलक मिलती है। प्रेम की कोमलता और आकर्षण को व्यक्त करते हुए शायर कहते हैं—
“ख़्वाब क्या देखूँ कि तुम आँखे मेरी
अपनी आँखों में बसाकर ले गये।”
यह शेर प्रेम की उस अनकही भाषा को दर्शाता है, जिसमें आँखों की भाषा ही सब कुछ कह जाती है। वहीं, विरह और तड़प को दर्शाते हुए शायर लिखते हैं—
“तेरी भींगी हुई पलकों से तो लगता है यही
तेरे सीने में भी हलचल सी मची हो जैसे।”
यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि प्रेम केवल पाने का नाम नहीं, बल्कि यह एक ऐसा अनुभव है, जिसमें दोनों प्रेमी एक-दूसरे की भावनाओं को बिना शब्दों के भी समझ सकते हैं।
बसन्त सागर केवल व्यक्तिगत भावनाओं तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उनकी शायरी समाज की विसंगतियों और राजनीति की सच्चाइयों को भी उजागर करती है। वे बड़े सहज अंदाज में व्यवस्था की खामियों पर प्रहार करते हैं—
“कुछ सियासी लोग कुरसी और हुकूमत के लिए आशियाने मुफ़लिसों के फूँकते देखे गए।”
यह शेर राजनीति की उस कड़वी सच्चाई को दर्शाता है, जहाँ सत्ता के लिए गरीबों के घरों तक को आग लगा दी जाती है। यह सामाजिक चेतना से परिपूर्ण शेर हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वास्तव में सत्ता का नशा इतना बड़ा हो सकता है कि इंसानियत को ही भुला दिया जाए?
इसी क्रम में एक और शेर—
“अपने बनकर अपनों को जो ठगते हैं
ऐसों से तो दूर ही जाना अच्छा है।”
यह शेर उन लोगों पर एक तंज है, जो दिखावे में अपनों का साथ देते हैं, लेकिन असल में उनके लिए नुकसानदायक साबित होते हैं।
ग़ज़लें केवल प्रेम और राजनीति तक सीमित नहीं होतीं, बल्कि वे जीवन के गहरे दर्शन और अनुभवों को भी प्रस्तुत करती हैं। शायर लिखते हैं—
“ये आशिकी का समन्दर भी क्या समन्दर है
जो डूबता है यहाँ, वो यहाँ उभरता है।”
यह शेर प्रेम को एक जीवन-दर्शन के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसमें प्रेम के सागर में डूबने वाला व्यक्ति ही प्रेम की असली गहराई को समझ सकता है। इसी तरह, जीवन की कठिनाइयों और यात्रा को दर्शाते हुए वे लिखते हैं—
“पहुँच कर दोस्तों मनचाही मंज़िल पे सदा
मुसाफिरों ने सफ़र का गुमान तोड़ा है।”
यह शेर जीवन के उस सत्य को उजागर करता है, जहाँ लोग मंज़िल पाने के बाद सफर को भूल जाते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि सफर ही असली चीज़ है, मंज़िल केवल एक पड़ाव होती है।
आज के दौर में रिश्तों का बदलता स्वरूप भी शायर की नज़र से नहीं बच पाया। वे इंसानों की फितरत को कुछ यूं बयां करते हैं—
“जिस तरह से बदल जाते हैं इंसानों के तेवर
इस तेज़ी से मौसम भी बदलता नहीं कोई।”
यह शेर बड़ी सहजता से आज के समाज में लोगों के व्यवहार में आने वाले बदलावों को उजागर करता है। यह व्यंग्य और यथार्थ का एक बेहतरीन मिश्रण है।
इश्क़ का एक रूप जुनून भी होता है, जिसे शायर बहुत ही सुंदर अंदाज़ में दर्शाते हैं—
“हज़ार जुर्म किये मैंने बेख़ुदी में मगर
मेरी तमाम ख़ताओं के जिम्मेदार तुम हो।”
यह शेर दर्शाता है कि प्रेम में डूबा व्यक्ति खुद को भुला देता है और अपने हर हालात के लिए अपने प्रेम को ही जिम्मेदार ठहराता है। इसी तरह, जवानी के नशे को लेकर लिखा गया शेर—
“जवानी का नशा कहते हैं इसको
पिये बिना ही डगमगाए जा रहे हैं वो।”
यह उस युवा अवस्था की झलक देता है, जिसमें व्यक्ति बिना किसी कारण के ही उत्साह और जोश से भरा होता है।
बसन्त सागर की भाषा बेहद सरल, सहज और प्रवाहमयी है। उनकी शायरी में गहराई होने के बावजूद भी यह आम पाठकों को आसानी से समझ में आती है। वे भावों को अभिव्यक्त करने के लिए सीधे और प्रभावी शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनकी ग़ज़लें कहीं भी बोझिल नहीं लगतीं, बल्कि हर शेर अपने आप में एक कहानी कहता हुआ प्रतीत होता है। इनकी लेखनी में उर्दू और हिंदी शब्दों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है, जो शायरी को न केवल पठनीय बनाता है, बल्कि इसे अधिक प्रभावी भी बनाता है।
“ठहरे हुए लम्हे” केवल एक ग़ज़ल संकलन नहीं है, बल्कि यह एक एहसास, एक दर्पण और एक दस्तावेज़ है, जिसमें जीवन के तमाम पहलू समाए हुए हैं। बसन्त सागर की शायरी प्रेम, समाज, राजनीति, दर्शन और मानवीय भावनाओं का एक अनमोल संगम है। इनकी लेखनी न केवल गहराई से भरी हुई है, बल्कि यह पाठकों को सोचने, महसूस करने और अपनी भावनाओं को एक नए दृष्टिकोण से देखने पर मजबूर कर देती है। यह संकलन निश्चित रूप से ग़ज़ल प्रेमियों के लिए एक अनमोल धरोहर साबित होगा और साहित्य-जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाएगा।
पंकज कुमार पाण्डेय
वार्ड नं.-14,पंजियार टोली
रोसड़ा,समस्तीपुर
बिहार 848210
वार्ता-7667273836