तमाशा बनता लोकतन्त्र
सम्पादकीय
खुला मंच में तीस दलीय मोर्चा द्वारा हुए शक्ति–प्रदर्शन के पश्चात् एक बार पुनः सहमति के द्वारा संविधान निर्माण की छोटी सी उम्मीद की किरण दिखी है । छोटी सी इस मायने में कि सहमति और असहमति की दो विपरीत धाराएँ साथ–साथ चल रही हैं । काँग्रेस जहाँ संयम दिखा रही है वहीं एमाले अभी भी पुराने तेवर में ही नजर आ रहा है । जनता के द्वारा दिए गए संविधान निर्माण का जज्बा इतनी तीव्रता के साथ उनके दिलों में उभर रहा है कि वो अभी भी बहुमत के मद के साथ बहुमतीय प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाह रहे हैं । किसी और पक्ष का इंतजार उन्हें असहनीय हो रहा है । खैर जनता भी लोकतंत्र का तमाशा देख रही है । देखें आगे–आगे होता है क्या ?
एक ओर अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं को जहाँ यह संदेश दे रहा है कि जो गुजर गया उसे छोड़ो और आगे बढ़ो वहीं दूसरी ओर राजधानी ही शर्मसार हो रही है महिला हिंसा की वारदातों से । आखिर इसे कैसे छोड़कर आगे बढ़ें ? पिछले दिनों राजधानी में हुए एसिड कांड ने सोचने पर विवश कर दिया है कि जब राजधानी महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है तो सुदूर प्रांतो की क्या स्थिति होगी ? सरकार और प्रशासन इतनी निरीह है कि वो बेचारी अभिभावक के सहयोग के बिना अपराधी को पकड़ने में असक्षम है । अगर तंत्र ही इतना कमजोर है, तो मजबूत लोकतंत्र की तो उम्मीद ही बेकार है । सक्षम, सम्बल और सम्मान ये तीन विचारधाराएँ जिस दिन समाज में नारियों के लिए समान रूप से प्रवाहित होने लगेंगी उस दिन स्वतः नारियाँ सशक्त हो जाएँगी । ऐसा नहीं है कि सब गलत है, पर ऐसा भी नहीं है कि सब सही है । पीड़ा की कोई परिभाषा नहीं होती कि कौन सी पीड़ा अधिक है और कौन सी पीड़ा कम, किन्तु बलात्कार की पीड़ा अंतहीन है । रुह काँपती है, इस असहनीय पीड़ा की शिकार छः वर्षीया बच्ची जो आज जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रही है, उसे सोच कर । कहाँ है हमारा सभ्य कहलाने वाला समाज और उसकी सामाजिकता और नैतिकता ?
खैर, एक नई रोशनी और नई उम्मीदों के साथ कदम आगे बढ़ते हैं क्योंकि —
हमें स्वीकार है वह भी । उसी में रेत होकर
फिर छनेंगे हम । जमेंगे हम । कहीं फिर पैर टेकेंगे ।
कहीं फिर से खड़ा होगा नए व्यक्तित्व का आकार । (अज्ञेय)
रंगो और गुलालों का त्योहार होली, जो हमें मिला देती है अपनों से, गैरों से, सभी रंजोगम को भुलाकर इस रंगीन अवसर पर हिमालिनी परिवार की ओर से समस्त जन को अनेक–अनेक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ । अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस को समर्पित हिमालिनी का यह नवीन अंक सुधी पाठकों के हाथ में है आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा है । कृपया अपने विचारों से अवगत कराएँ जिससे हम अपेक्षित सुधार कर पाएँ ।