नई पीढ़ी को अवसर देना होगा
युग पाठक , बात चल रही है संविधान निर्माण की । इसी सन्दर्भ में मैं सबसे पहले यह बता दूँ कि मुझे मधेश क्या है यह समझने में ३० वर्ष लगे । मैं अक्सर अपने से बड़े और हमारे गुरुवर्ग से यह सवाल करता हूँ कि आखिर आपने अब तक देश की सही व्याख्या क्यों नहीं की ? हर तरफ से जो असंतोष की आवाज आ रही है, अलग राज्य या आन्दोलन की आवाज आ रही है उसे आपने क्यों नहीं समझा ? क्यों अपने ही देश को समझने के लिए एक पीढ़ी को तीस या पैंतीस वर्ष लग रहे हैं ? क्यों आज हर समुदाय एक विशेष पक्ष के विरुद्ध खड़ा हो रहा है ? जब मैंने आर्थिक इतिहास को खंगालने की कोशिश की तो मैंने देखा कि देश को सबसे अधिक आय मधेश से होता है और वहाँ से हुए आर्थिक स्रोत से ही दरबार का खर्च चलता था, बख्तरबंद खरीदे जाते थे, ग्रीक मूर्तियाँ खरीदी जाती थी । अर्थात आमदनी मधेश का और खर्च दरबार में । समझने वाली बात यह है कि जहाँ से स्रोत आया अगर उसकी आमदनी का कुछ हिस्सा भी उसी जगह पर लगाई जाय तो विकास के मार्ग खुलते हैं, उत्साह की स्थिति बनती है और उत्पादन भी बढ़ता है किन्तु वर्षों के आर्थिक इतिहास को अगर आप देखें तो देश की स्थिति इससे बिल्कुल भिन्न है ।
आन्दोलन की बात करें तो इतिहास गवाह है कि सबसे अधिक सहभागिता मधेश की रही किन्तु उसके बाद जो परिदृश्य बदला उसमें मधेशी नहीं बल्कि जमींनदारों की संतान को स्थान मिला । मेरे पूर्वज नुवाकोट से आते हैं । आज भी वहाँ पृथ्वीराज के जमाने के मोहर या पत्र प्राप्त होते हैं । मुझे जब भी अपने बुजुर्गों से मिलने का अवसर मिलता है तो मैं उनसे पूछता हूँ कि आपके संस्कार क्यों ऐसे हैं कि आप और आपके पड़ोसी एक साथ बैठ नहीं सकते हैं ? दो खेतों के बीचोबीच उसे बाँटने के लिए आड़ की व्यवस्था होती है । उसे दोनों तरफ के लोग अपने अपने तरफ से काटते हैं और एक दिन ऐसा आता है कि लड़ाई ठन जाती है । परन्तु इसके पहले उनके बीच इस विषय पर बातें नहीं होती । अगर होती तो लड़ाई नहीं होती । क्यों इतिहास दरबार तक ही सिमट कर रह गया ? क्यों हमारी शिक्षा में सही जानकारी नहीं दी जाती ? क्यों राष्ट्रीयता की सही व्याख्या नहीं बताई जाती । नई पीढ़ी असमंजस में है । नेपाल में बौद्धिक आन्दोलन इतना कमजोर क्यों है ? अपने ही देश को समझने में क्यों इतना समय लग रहा है ? संसार में कहीं ऐसा नहीं है कि अपने ही देश की संरचना को समझना इतना मुश्किल होगा । यह देश बहुजातीय, बहुभाषिक और बहुसंस्कृति को अपने अन्दर समेटे हुए है तो क्यों नहीं इसे उचित स्थान प्राप्त है ? प्रश्न बहुत हैं और मैं अपने बुजुर्गों से यह पूछता हूँ कि आपने नई पीढ़ी को क्या दिया है ? महिलाओं को आरक्षण देने की बात है तो वहाँ भी उच्च वर्ग की महिला की ही समस्या को देखा जा रहा है वहाँ निचले तह की महिलाएँ नहीं है । कहने का तात्पर्य यह है कि हम ऐसे ही पीछे होते जा रहे हैं । आज तक कोई कामन बहस क्यों नहीं हुई है इन समस्याओं को लेकर यह भी तो एक समस्या ही है । सबसे बड़ी बात जो है वह यह है कि ९५ प्रतिशत जनता को आप मानते हैं कि वह कुछ नहीं जानती और ५ प्रतिशत जो हैं वो अपने आपको सर्वज्ञ समझते हैं और देश चला रहे हैं । ऐसे में यह देश कैसे चलेगा ? उपनिवेशवादी नीति यही है । इसलिए देश को सही तरीके से चलाने के लिए संघीयता, पहचान और स्वशासित क्षेत्र बनाना आवश्यक है तभी तो यह साबित होगा कि जिसे आप अशिक्षित, अविकसित कह रहे हैं वह भी काबिल हैं । कामन नागरिक को भी जानकारी है इस बात को समझने की आवश्यकता है । आप जब अवसर नहीं देंगे तो व्यक्ति खुद को साबित कैसे करेगा । इसलिए संरचना में बदलाव की आवश्यकता है । सत्ता में कोई भी आए वो इनके ही बीच के होंगे और फिर बात वहीं की वहीं रह जाएगी । मेरा मानना यह है कि पीढ़ी में बदलाव की जरुरत है । एक नई सोच और उर्जा की आवश्यकता है । सभी क्षेत्र में वही पुरानी पीढ़ी है जो वर्षों से देश को उसी पुरानी संरचना और सोच के साथ चला रही है । आवश्यकता इसको बदलने की है । और अगर यह नहीं हुआ तो आन्दोलन तो होना ही है । यह आन्दोलन आज भले ही छोटा हो कल बड़ा होगा । इसलिए आज जरुरत इस बात की है कि समय को पहचाना जाय उसकी माँग को समझा जाय नहीं तो हमारे बाद की पीढ़ी भी ऐसे ही पिछड़ती चली जाएगी । वंशवाद को खत्म करना होगा । नई पीढ़ी को अवसर देना होगा ।