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बहुत जल्द टूटेगा मधेश का चक्रव्यूह : मुकेश झा

मधेशियों के साथ किया गया समझौता कार्यान्वयन नहीं करना, मधेश आंदोलन की उपेक्षा करना, मधेशी आंदोलनकारियों को निर्ममता पूर्वक हत्या करके मधेशियों को दमन करना… …



नेपाल के राजनैतिक और सत्ता के महाभारत में चक्रव्यूह का प्रथम घेरा नेपाल के कुछ परिवारों का है जो अपने आपको नेपाल का कर्ता–धर्ता मानते हैं । अगर इस घेरा पर दृष्टि डालें तो लगभग ४÷५ सौ परिवार ऐसे हैं जो हमेशा देश के उच्चे ओहदे पर आसीन रहे हैं । चाहे जो भी तन्त्र आये सत्ता आए, राणा शासन हो या लोकतन्त्र देश की चाभी इनके ही पास है । प्रमुख सचिव, प्रधानन्याधीश, सेनाध्यक्ष जैसे राज्य के प्रमुख अंग पर कुंडली मार कर बैठे हैं । इनके सहयोग और समर्थन में इनके ही नाते–गोते वाले रहते हैं जो इनको रक्षा कवच प्रदान करते हैं । प्रमुख पद हथियाने वालों की संख्या से उनकी रक्षा देने वालों की संख्या थोड़ी अधिक है और उनका पद राजकाज में कुछ नीचे स्तर का । तीसरे पायदान पर पहले और दूसरे पायदान पर रहे दिग्गजों के आसपास रहने वाले दया दृष्टि को लालायित इत्यादि हैं । ऐसे लोगों को जिला के कार्यालय प्रमुखों तक रखा गया है । कैसा भी कानून आये, कैसी भीयवस्था हो, कैसी भी परीक्षा हो, वह इस कर्मचारी तन्त्र के देखरेख में ही होती है । इसमे वर्चस्ववाद, नातावाद और कृपावाद हावी है तो इस घेरा को कैसे तोड़ा जाय ?
सत्तायवस्था के चक्रव्यूह का दूसरा घेरा राजनैतिक पार्टियों का है । नेपाल को लोकतांत्रिक देश हुए करीब १२ साल हुआ । इस अवधि में यह स्पष्ट दिख रहा है किस तरह अपने आपको राष्ट्रीय पार्टी मानने वालों ने देश को अपनेयूह में फँसाये हुआ है । मधेशियों के साथ किया गया समझौता कार्यान्वयन नहीं करना, मधेश आंदोलन की उपेक्षा करना, मधेशी आंदोलनकारियों को निर्ममता पूर्वक हत्या करके मधेशियों को दमन करना, मधेशियों को नेपाली मानने से इनकार करना इतना ही मधेशियों के लिए प्रधानमंत्री जैसेयक्ति द्वारा भी अपशब्द का प्रयोग करना, प्रताडि़त करना जैसा नीचतम कार्य नेपाल के राजनैतिक दलों के द्वारा किया जा रहा है । इस तरह के राजनैतिक घेरा को तोड़ने का जो अचूक अस्त्र है वह है जनमत । परन्तु शकुनी जैसे राजनैतिक बेईमानों ने जनसँख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र नहीं बना कर इस जनमत वाले अस्त्र को विफल कर दिया है । जनसँख्या के आधार पर स्थानीय तह प्रदेश एवम् संसद के निर्वाचन क्षेत्र नहीं होने का अर्थ शक्ति संतुलन में बहुत ही कमजोर होना । शक्ति में कमजोर होने का अर्थ हमेशा दूसरे का प्यादा बन कर सत्ता साझेदारी में इधर उधर होते रहना । मधेश और मधेशी के लिए कोई भी सकारात्मक कानून बनाना या मधेश के हित विपरीत बने कानून को बदलना अपने हाथ में नहीं रहना । इसका परिणाम मधेशवादी दल का जनमानस से विश्वास उठना और उनका राजनैतिक भविष्य समाप्त होना ।



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