वह एक ही तो है (लघुकथा), उजियारे का गीत : प्रो.शरद नारायण खरे
लघुकथा
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वह एक ही तो है
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” अरे निगारआज तो अपने एरिया में कहीं बिजली गिरी है न ?” नीलम ने कहा !
” अरे एरिया नहीं ,वो सामने वाली वाली मस्जिद के गुम्बद पर गिरी है,जिसमें वो गुम्बद को काफी नुकसान पहुंचा है !” निगार ने जवाब दिया !
” चलो गनीमत है कि बिजली किसी बिल्डिंग पर नहीं गिरी ,नहीं तो जन हानि भी हो सकती थी !————-पर एक बात है निगार कि तेरे ख़ुदा ने हम सबकी बड़ी रक्षा की ,सबकी मार अपने सिर पर ले ली ,और हम सबको बचा लिया !” नीलम ने कहा !
” बिलकुल सही कह रही हो नीलम ,पर इसी तरह से दो साल पहले तेरे भगवान ने भी तो हम सबको बचाया था !” निगार ने कहा !
” क्या मतलब ? ” नीलम ने जानना चाहा !
” अरे तू भूल गई क्या ? दो साल पहले मोहल्ले के राम मंदिर के शिखर पर इसी तरह से बिजली गिरी थी न ?” निगार ने नीलम को याद दिलाते हुए कहा !
“हां –हां बिलकुल याद आ गया !पर एक बात तो है निगार ,कि जब सच्चाई यही है तो फिर ख़ुदा- भगवान में अंतर ही क्या हुआ ? नीलम ने अपने दिल की बात कही !
” तुम सच कह रही हो नीलम, लेशमात्र भी फ़र्क नहीं हुआ !दोनों एक ही तो हुए न ?” निगार ने समर्थन करते हुए कहा !
” तो फिर निगार ! धर्माचार्य दोनों को अलग- अलग क्यों बताते हैं ?”
” अरे नीलम ,हिन्दु- मुसलमानों को मज़हब के नाम पर लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए !
उजियारे का गीत
अँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
पीड़ा,ग़म है,व्यथा-वेदना,
दर्द नित्य मुस्काता
जो सच्चा है,जो अच्छा है,
वह अब नित दुख पाता
किंचित भी ना शेष कलुषता,शुचिता को अब वरना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
झूठ,कपट,चालों का मौसम,
अंतर्मन अकुलाता
हुआ आज बेदर्द ज़माना,
अश्रु नयन में आता
जीवन बने सुवासित सबका,पुष्प सा हमको खिलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
कुछ तुम सुधरो,कुछ हम सुधरें,
नव आगत मुस्काए
सब विकार,दुर्गुण मिट जाएं,
अपनापन छा जाए
औरों की पीड़ा हरने को,ख़ुद दीपक बन जलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!