Thu. Apr 18th, 2024
himalini-sahitya

स्वागत करों सुन्दर भविष्य का

स्वागत करों सुन्दर भविष्य का



:-डाँ. ज्योत्स्ना वर्मा

रातभर मौन साधना में रत रहने वाले
हे महाव्रती तरुवर ! यद्यपि जानती हूँ मैं-
गहन विषद है तुम्हें ।
हो गया है आरम्भ झुलसना तुम्हारा
यह सोचकर कि-
अन्त समीप है तुम्हारा, मृत्यु समीप है पल्लवों की
गिर जाएँगे एकदिन शुष्क होकर वे सभी
जो रहे हैं साथी तुम्हारे श्रावण की रिमझिम फुहारों में-
शिशिर की ठिठुरती रातों में
न कर सकी महसूस कभी तुम्हारी एक भी शाखा
भीषण शिशिर शैत्य को
क्योंकि भीगे हैं सदा वे ही स्वयं
शीतल ओस की हर बूँद से
इतना ही नहीं
यही तो रहे हैं प्रतीक सदा से तुम्हारे सम्पर्ूण्ा यौवन के ।
किन्तु अब रह जाओगे तुम खडेÞ
मूक साक्षी से बने अपने सुन्दर अतीत के
प्रकृति के इस कठोर नियम के
हे महाव्रती ! हे प्रियवर !! है विषद गहन तुम्हारा
स्वीकार लो इस सत्य को भी
निश्चित है आवागमन यह
रहेगा विश्व यूँ ही,
रहेगी यह वसुन्धरा भी यूँ ही,
और बहेगी शीतल मन्द समीर भी सदा यूँ ही
हे महासाधक ! न करो अब विषाद क्योंकि-
ये पल्लव ही हैं जो विश्व को बारम्बार ध्यान दिलाते हैं उपदेश गीता का ।
अतीत में जीना मृत्युसमान है
और मृत्यु पर बिखर जाना या स्थिर होना स्वयं मृत्यु है
समझकर इसे पल्लव का मात्र रुप-परिवर्तन
ओओ, आओ सुख-दुख को समान रुप से धारण करके
करो वरण उस परम सत्य का,
उस महान शाश्वत सत्य का और
और प्रसारित कर अपनी सुदृढÞ भुजाओं से
करो स्वागत पल्लवों के बालरुप का
अपने सुन्दर भविष्य का
ऋतुराज वसन्त काश गीता का ।
-कवयित्री केन्द्रीय विद्यालय भारतीय दूतावास में शिक्षिका हैं)

===============================================================

सपना जीवन-जीवन सपना:-वृषेश चन्द्र लालकुछ सपनें ऐसे होते हैं
न होते हैं न खोते हैं ।
हर नींद में आ मगर देखो
थपकी जीवन को देते हैं ।
जब जाती टूट जीवन धारा
सपनें ही हमें तो ढोते हैं
कभी लोरी से कभी होरी से
दुख सपने ही धोते हैं ।
कभी मगन प्रेम में, सपनों में
कभी खिल खिल कर मुस्काते हैं ।
कभी डरते हैं कभी रोते हैँ
कभी तप में तपकर रह जाते हैं ।।  
सपना जीवन या जीवन सपना
यह भेद बडा भेदी भैया ।
न यहाँ नाव मझदार बडा
न वहाँ खडा कोई खेवैयां ।।
आओ सपनों में जी लो जी भर
जीवन सपनों सा हो जाये ।
इस सुख दरद के सागर में
दोनों अपना सा हो जाये ।।
ना भेद रहे सपनों से जब
जीवन अनन्त हो जाता है  ।
न होता फिर सीमा बन्धन
यहाँ मैं दिगन्त बन जाता है ।

=========================

संवैधानिक दर्पण
एन.के. झा
नयाँ नेपाल कैसा हो।
नागरिको की कामना जैसा हो।।
विधिका शासन और न्यायलय का सर्वोच्चता हो।
जनता द्वारा जनता के लिए जनता का शासन व्यवस्था हो।।
मानव हक और अधिकारों का रक्षा हो।
नर-नारियों का अधिकारों में समता हो।।
हर जात जातियों का धर्म संस्कृति की रक्षा हो।
राष्ट्रिय एकता, समता और बंधुता हो।।
आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक न्याय हो।
समावेशी लोकतान्त्रिक बहुदलीय शासन की व्यवस्था हो।।
समाजवादी लोक कल्याणकारी संघात्मक गणराज्य हो।
संसदीय व्यवस्था, बहुदल, बहुमतका निर्वाचित स्थायी सरकार हो।।
लोपोन्मुख पिछडा वर्ग, आदिवासी, दलित, जनजातियों की रक्षा हो।
राष्ट्रीय सहमति, विकास निर्माण और शान्ति का सत्य संकल्प हो।।
व्यक्ति की गरिमा की सुनिश्चितता हो।
राष्ट्रिय सुरक्षा, र्सार्वभौम अखण्डता रक्षा में सभिका योगदान हो।।
अखण्डता की सुनिश्चितता करने वाली बंधुता हो।र्
वर्ग से नेपाली कहलाने का समाजन अवसर हो।।
विश्व में गौरवपर्ूण्ा उपस्थिति और सभ्य नागरिको का पहचान हो।
बाँस, गाँस, कपास, शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था हो।
हम दो हमारे दो का नारा और सुुख, शान्तिपर्ूण्ा छोटा घर परिवार हमरा हो।



About Author

यह भी पढें   भोपाल में त्रिदिवसीय "वनमाली कथा सम्मान 2022" समारोह का आयोजन
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: