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ईश्वर को नकारने बाला चीन आज ईश्वर से प्राण रक्षा की प्रार्थना कर रहा है : अजयकुमार झा

अजयकुमार झा, जलेश्वर । चीन में फैला कोरोना वायरस विश्व की दो तिहाई नागरिकों को शमसान पहुंचा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सलाहकार ने नए कोरोना वायरस के प्रसारण पर नजर रखने वाले लोगों को चेतावनी दी है कि दुनिया की दो तिहाई आबादी को करोना वायरस से संक्रमित हो सकती है। शनिबार तक इससे प्रभावित लोगों की संख्या लाखों में पहुंच गई है।
ब्लूमबर्ग और स्पूतनिक की रिपोर्ट के अनुसार जिस तरह से अब दुनिया के बाकी देशों में कोरोना के मरीज पाए जा रहे हैं उससे यही लग रहा है कि ये दुनिया को बुरी तरह तवाह कर देगा।
अभी तक इसका केंद्र सिर्फ वुहान और हुबेई प्रांत ही थे मगर अब इस वायरस के चपेटे में दुनिया के अन्य देशों के लोग भी आ रहे हैं।
स्मरण रहे ! जो चीन अपनी आधुनिकता और वैज्ञानिकता के आगे किसी पडोसी देश को चैन से जीने नहीं दे रहा था आज वह अपनी ही नागरिको के सामूहिक मौत का मूक दर्शक बना त्राहिमाम कर रहा है। ईश्वर तक के अस्तित्व को नकारने बाले चीन आज घुटने के ब़ल खड़ा होकर ईश्वर से प्राण रक्षा की प्रार्थना कर रहा है। लेकिन जिनके ईश्वर ही मर गए हों उनकी प्रार्थना को भला सुनेगा कौन!
मानव के संस्कार में ही दया, करूणा, प्रेम, सेवा और सदभाव होता है। परन्तु आज आधुनिकता के दौर में दिखाबे के कारण लोग मानवता को तिलांजलि दे पशुता को हृदयंगम करने लगे हैं। उन्हें हिंशा में मजा आ रहा है। प्राणियों को तड़पाने में बहादुरी समझ रहे हैं। प्राणहीन मिट्टी के लिए करोरों प्राणवान के प्राण हरण करने को राष्ट्रीयता समझ रहे हैं। चंद पैसों के लिए मनुष्यों और अन्य निरीह प्राणियों के जीबन के साथ खिलबाड़ कर रहे हैं। धोखेबाजी, षडयंत्र, दंगा और युद्ध को आज राजनैतिक आदर्श मान रहे हैं। जीसका भयावह परिणाम आज विश्व के सामने उपस्थित है।

संतो का कहना है, (औरन के शीर काटिए आपन शीर कटाय, कहे कबीर बिचारी के बदला कहीं न जाय)
आज से करीब पंद्रसय वर्ष पहले बोधिधर्म का जन्म दक्षिण भारत के पल्लव राज्य के कांचीपुरम के राजा सुगंध के तीसरे पुत्र के रुपमे हुआ था। आज का विकसित चीन उनके त्याग, वलिदान और ज्ञान का ऋणी है।
बात उस समय की है जब बोधिधर्मन चीन में बौद्ध धर्म के आचार्य के रुपमे चीनी राजा वू के आग्रह पर
सत्य और ध्यान के प्रचार-प्रसार के लिए महिनों के कठिन सफर के बाद चीन देश के नानयिन (नान-किंग) गांव पहुंचे। कहते हैं कि इस गांव के ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के अनुसार यहां बहुत बड़ा संकट आने वाला था। बोधिधर्म के यहां पहुंचने पर गांव वालों ने उन्हें ही यह संकट समझ लिया और उन्हें उस गांव से खदेड़ दिया। वे गांव के बाहर रहने लगे। परन्तु संकट तो आज के कोरोना महामारी के जैसा ही वायरल आक्रमण हुआ। लोग बीमार पड़ने लगे। गांव में अफरा-तफरी मच गई। गांव के लोग बीमारी से ग्रसित बच्चों या अन्य लोगों को गांव के बाहर छोड़ देते थे, ताकि किसी अन्य को यह रोग न लगे। आज ठीक वही स्थिति है चीन की। परन्तु बोधीधर्मन एक आयुर्वेदाचार्य भी थे, अतः उन्होंने ऐसे बीमारों को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया। तब गांव के लोगों को समझ में आया कि यह व्यक्ति हमारे लिए संकट नहीं बल्कि संकटहर्ता के रूप में सामने आया है। गांव के लोगों ने तब ससम्मान उन्हें गांव में प्रतिष्ठा दी। उन्होंने पूरे गांव को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराकर गांव को महामारी से बचा लिया। उसके वाद
कुछ हैवानों, लुटेरों की एक टोली ने गांव पर हमला कर दिया और वे क्रूरता के साथ लोगों को मारने लगे। चारों और कत्लेआम मच गया।
परन्तु एक प्रबुद्ध, सम्मोहनविद् और चमत्कारिक संत के रहते अतातायी नहीं टिक सके। वोधिधर्मन प्राचीन भारत की कालारिपट्टू विद्या में भी पारंगत थे। कालारिपट्टू को आजकल मार्शल आर्ट कहा जाता है।
बोधीधर्मन ने मार्शल आर्ट और सम्मोहन के बल पर उन हथियारबद्ध लुटेरों को हरा दिया और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। गांव वालों बोधी धर्मन को लुटेरों की उन टोली से अकेले लड़ते हुए देख भौचक्के रह गए। चीन के लोगों ने युद्ध की आज तक ऐसी आश्चर्यजनक कला नहीं देखी थी। वे समझ गए कि यह व्यक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। इसके बाद तो बोधी धर्मन का सम्मान और पूजा घर घर होने लग गया। उन्होंने गाव वासियों को अपनी सभी कलाएँ सिखा दी। अंत में जब वो भारत लौटने लगे तो ज्योतिषियों के षडयंत्र के तहत उन्हें भोजन में जहर देकर मार दिया गया। मित्रों! यह है चीन का ऐतिहासिक क्षुद्र चरित्र, षडयंत्र और धोखेबाजी संस्कार! दुष्टता, क्रूरता और पशुता इनके नस नस में स्वतःस्फूर्त दौड़ रहा है। अपनी इसी क्षुद्रता से संसार में गौरवान्वित चीन, आज अपनी जाल में मकड़े की तरह फस गया है। इसकी निर्ममता आज चीनी ही नहीं पुरे विश्व देख रहा है।
यदि यह स्थिति आज भारत की होती तो चीन पाकिस्तान आज क्या करता ? यह यक्ष प्रश्न है ! भारत चीनी भाई भाई के समय आक्रमण कर लाखों भारतीय सैनिको की हत्या और भूमि कब्ज़ा का इतिहास क्या नहीं दोहराया जाता ? परन्तु एक महान संस्कारिक और सभ्य देश भारत आज भी चीन को हृदय से सहयोग करने के लिए तैयार है। यही मानवता के प्रशोधन का प्रमाण भी है।
बात इतनी है नहीं चीन के क्रूरता और पशुता के कारण बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा जिनकी एक विश्व विख्यात अध्यात्मिक परंपरा रहा है, उन्होंने 10 मार्च, 1959 के दिन तिब्बत छोड़ने को बाध्य हो गए, परन्तु हर तरफ चीनी सैनिकों की निगरानी के बीच यह इतना आसान नहीं था। ऐसे में उन्होंने पलायन के लिए ‘अंधेरे’ को चुना। उस शाम वे अपने चंद करीबी साथियों के साथ ‘मैकमोहन लाइन’ की तरफ बढ़े और रात के अंधेरे में निकल पड़े। हजारो चीनी शैनिक उनके पास से ही गुजर जाते परन्तु घने कोहरे के कारण देख नहीं पाते थे। यह ईश्वर की ही उपस्थिति को दर्शाता है। जब वो लोग हिमांचल पहुँच गए तो आकाश सफा हो गया। चीनियों को भालीभाती पता है यह, लेकिन झूठ का राजनैतिक अहंकार के कारण इन तथ्यों को नजरअंदाज किए हुए है। आज 60 साल से एक सम्बुद्ध सदगुरु दलाई लामा भारत में शरणार्थी की जीबन जी रहे हैं। उन्हें भारत ने पूरा सम्मान दे रखा है। लेकिन जहाँ संतो के साथ इस प्रकार का षडयंत्र और हिंसक व्यवहार सरकार की ओर से किया जाता हो; तो उस देश के नागरिकों का दुर्भाग्य को कोई नहीं रोक सकता। आज कोरोना वायरस मानव के निर्मम व्यवहार हेतु ईश्वर के द्वारा एक अति शुक्ष्म उपहार ही तो है। जीवों के साथ किया जा रहा क्रूरतम व्यवहार अब ईश्वर के लिए असह्य हो गया है। महा कारुणिक परमपिता परमात्मा के नन्हें पुत्रों के साथ प्रौढ़ पुत्रों का दुराचार उनके नेत्रों को रक्ताश्रु से भर दिया है जिसका एक बूंद भी इस पृथ्बी को डुबाने के लिए पर्याप्त है। परन्तु इन मूढो को समझ आए तब न। ए तो आज भी मान सरोवर के धार्मिक- पौराणिक अस्तित्व के मिटाने में अपनी बहादुरी और बरप्पन समझ रहे हैं। इस बसुन्धरा के संरक्षक परमपिता परमात्मा के प्रिय महादेव तथा संतों के आश्रय स्थल कैलाश इनके लिए दो कौड़ी का पहाड़ है। वे इन्हें किसी भी नष्ट कर दुनियाँ से वाहवाही लेने को आतुर है। लेकिन इन्हें पता नहीं जब इंदिरा गांधी ने गो रक्षक संतो पर गोलियाँ चलवाई तो संतो के लाश को उठाते समय महात्मा करपात्री जी ने इनके वंश विनास का श्राप दिया था, जो धीरे धीरे फलित होने लगा। अतः आज के विश्व मानवता को और सरकारों को इस विषय पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। सारे शिक्षित वर्ग हिंसा को प्रश्रय देकर खुद भी हिंसक होते जा रहे हैं जिसका परिणाम समूल विनास से कम नहीं आँका जा सकता। पशु के निर्मम हत्या से उत्पन्न विनाशकारी वेभ के कारण भूचाल, ज्वामुखी विष्फोट, जीवाणुओं तथा विषाणुओं का आक्रमण लगायत अनेकों प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं का सृजना होने की बात युरोपेली वैज्ञानिकों ने दसकों पहले पता लगा चूका है। फिरभी अहंकार तथा क्षुधा के तृप्ति हेतु भीषण जघन्य अपराध किया जाना आजके मानवता के ऊपर घटिया कलंक के अलाबा और कुछ नहीं है। ज्ञातव्य हो! प्राण, सबका प्रिय होता है! याद रहे! हिंशा का बदला हिंशा ही होता है!!

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