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अमरीकी वैज्ञानिकों का कहना है कि वे पर्सनलाइज़्ड यानी किसी व्यक्ति विशेष के लिए मानव स्टेम सेल यानी मूल कोशिका बनाने की ओर एक क़दम और नज़दीक पहुँच गए हैं.



इस प्रयोग में अंडाणु लेकर उसे एक दूसरे व्यक्ति की कोशिका के साथ जोड़ा गया और उन्हें एम्ब्रियॉनिक यानी भ्रूणीय स्टेम सेल बनाने में सफलता मिली.
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकेगा, जब किसी व्यक्ति विशेष के लिए स्वस्थ कोशिका तैयार करके उसे क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के स्थान पर उपयोग में लाया जाएगा.
जर्नल ‘नेचर’ में प्रकाशित एक लेख में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि उन्होंने क्लोनिंग यानी जैविक प्रतिकृति बनाने की विधि ‘सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसप्लांट’ का प्रयोग करके किसी व्यक्ति के डीएनए से मेल खाने वाले भ्रूणीय मूल कोशिका बनाने में सफलता हासिल की है.
प्रयोग

वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने एक वयस्क त्वचा कोशिका से आनुवांशिक पदार्थ लेकर उसे एक अंडाणु में डाल दिया और ये भ्रूण बनने के आरंभिक चरणों तक पनप गया.

भेड़ डॉली की क्लोनिंग के लिए जिस पद्धति का उपयोग किया गया उसी से मानव भ्रूणीय स्टेम सेल विकसित किया गया है

इस प्रयोग के लिए उसी ‘सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसप्लांट’ विधि का प्रयोग किया गया जिससे 1997 में वैज्ञानिकों ने भेड़ डॉली के रूप में पहली स्तनपायी प्रतिकृति तैयार की थी.

इससे पहले एक कोरियाई वैज्ञानिक वांग वू-सुक ने ये दावा किया था कि उन्हें मानवीय भ्रूण के क्लोन से स्टेम सेल या मूल कोशिका बनाने में सफलता मिली है लेकिन बाद में ये दावा ग़लत साबित हुआ था.

न्यूयॉर्क स्टेम सेल फ़ाउंडेशन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ डाइटर एगली का कहना है कि अब तक इस बात पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा हुआ था कि क्या क्लोनिंग की विधि का मनुष्यों पर प्रयोग हो सकता है?

उनका कहना है कि ‘शोधकर्ताओं ने पहले इसका प्रयास किया था लेकिन वे विफल हो गए थे.’

‘नेचर’ में उन्होंने लिखा है कि उनके दल ने भी पारंपरिक तरीक़े से ये प्रयोग करने की कोशिश की लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली.

पहले उन्होंने अंडाणु के अनुवांशिक पदार्थ को हटाकर उसकी जगह क्रोमोज़ोम को डालकर ये प्रयोग किया लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली लेकिन जब उन्होंने अंडाणु के अनुवांशिक पदार्थ को यथावत रहने दिया और उसमें एक त्वचा की कोशिका से निकाले गए क्रोमोज़ोम को उसमें जोड़ा तो अंडाणु विकसित हो गया.
स्टेम सेल क्यों?


यह शोध पत्र दोनों पक्षों के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, उनके लिए जो ‘सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसप्लांट’ पद्धति का प्रयोग करके मानव कोशिका क्लोन करने की कोशिश कर रहे हैं और उनके लिए भी जो मानव की क्लोनिंग का विरोध करते रहे हैं”

रॉबिन लोवेल बैज, यूके नेशनल इंस्टिट्यूट फ़ॉर मेडिकल रिसर्च

कई बीमारियों का इलाज संभव नहीं होता. वैज्ञानिक कहते हैं कि उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता, सिर्फ़ देखभाल की जा सकती है.

लेकिन स्टेम सेल यानी मूल कोशिका की विशेषता ये है कि वह तंत्रिका, हृदय, हड्डी, त्वचा या लीवर की कोशिका में बदल सकता है.

यानी शरीर का ऐसा कोई भी हिस्सा यदि किसी बीमारी की वजह से क्षतिग्रस्त हो गया है तो स्टेम सेल से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की जगह स्वस्थ कोशिकाएँ विकसित की जा सकती हैं.

वैज्ञानिक मानते हैं कि हृदयाघात से क्षतिग्रस्त हृदय, डायबिटीज़ की वजह से काम नहीं कर रहे पैनक्रियाज़ को ठीक कर सकता है.

हालांकि इस बीच भ्रूणीय कोशिका की सहायता से बीमारियों के इलाज का परीक्षण चल रहा है.

उदाहरण के तौर पर लंदन में इसका उपयोग दृष्टिहीनता के इलाज के लिए किया जा रहा है.

लेकिन इस इलाज में बीमार व्यक्ति के अपने स्टेम सेल का उपयोग नहीं किया जाता और शरीर स्टेम सेल को नकार न दे इसके लिए दवाएँ लेनी होती हैं.

स्टेम सेल को लेकर कुछ परीक्षण शुरु हो गए हैं लेकिन अभी ये किसी और व्यक्ति के स्टेम सेल होते हैं

शोधकर्ता कह रहे हैं कि जिस प्रयोग में उन्हें सफलता मिली है वह चिकित्सा के क्षेत्र में सफलता की ओर एक क़दम है.

मुख्य शोधकर्ता डॉ डाइटर एगली ने बीबीसी से कहा, “जो कोशिका हमने विकसित की है वह अभी चिकित्सकीय उपयोग के योग्य नहीं है. ये शुरुआत है और ज़ाहिर है कि अभी और काम करना होगा.”

यूके नेशनल इंस्टिट्यूट फ़ॉर मेडिकल रिसर्च के प्रोफ़ेसर रॉबिन लोवेल बैज का कहना है, “यह शोध पत्र दोनों पक्षों के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, उनके लिए जो ‘सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसप्लांट’ पद्धति का प्रयोग करके मानव कोशिका क्लोन करने की कोशिश कर रहे हैं और उनके लिए भी जो मानव की क्लोनिंग का विरोध करते रहे हैं.”BBC Hindi



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