ठोस नीति तथा प्रभावी कार्यान्वयन की अपेक्षा
रमेश झा :किसी भी देश में शासन-प्रशासन विधि सम्मत होना चाहिए । यही विश्व भर में लोकतान्त्रिक मान्यता है । विधि अनुकूल शासन प्रणाली और प्रजातन्त्र एक दूसरे के परिपूरक हैं । किसी भी देश में जनता की राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास, सामाजिक सुरक्षा, शैक्षिक चेतना औद्योगिक सम्पन्नता, सांस्कृतिक ऐतिहासिक अक्षुण्णता तथा पर्यटकीय समृद्धि इसी मेरुदण्ड पर अवलम्बित रहती है । यही मेरुदण्ड रूपी आधार जिस देश का सबल रहता है, उसी का र्सवांगीण विकास संभव होता है । हमारे देश में विधि-सम्मत शासन प्रशासन की प्रक्रिया कब स्थापित होगी – कोई नहीं जानता । विगत कई वर्षों से राजनीतिक विरोध के कारण समय में कभी पर्ूण्ा बजट नहीं आ पाया । इसलिए देश में ठोस योजना, दूरदर्शी कार्यक्रम तथा प्रभावकारी नीति लागू नहीं हो पाई है । दुष्परिणाम सब के सामने है । समग्र रूप में आर्थिक विकास विशेष रूप से दुष्प्रभावित हुआ है । देश की चौतर्फी नीति और योजना निष्प्राण हो चुकी है । इसका मुख्य कारक तत्त्व है, सरकारी अनिर्ण्र्ााकी नीति तथा परम्परागत कार्यशैली । हरेक वर्षबजट बनाते समय बडÞी-बडÞी योजनाओं तथा जनपक्षीय बडÞे-बडÞे कार्यक्रमों की सरकार द्वारा घोषणाएं की जाती है पर कार्यान्वयन पक्ष निष्क्रीय दिखाई देता है । उदाहरण के रूप में अनेकानेक योजनाओं एवं कार्यक्रमों को ले सकते हैं । जैसे भारतीय सीमा पर स्थित रक्सौल से लेकर अमलेखगञ्ज तक पेट्रोलियम पदार्थ लाने के लिए पाइपलाइन निर्माण करने की योजना दो दशक से सरकारी प्रतिवद्धता के अभाव में अंगद के पाँव की तरह कागज पर जस की तस पडÞी है । वैसे ही ७५० मेगावाट वाली पश्चिम सेती जलविद्युत् योजना सरकारी अदूरदर्शी नीति तथा कार्यक्रम की अस्पष्टता से रुकावट पैदा कर रही है । इस योजना को साकार रूप देने के लिए खर्बों रूपयों की जरूरत है । विदेशी सहयोग के आधार पर आधारित १० हजार मेगावाट वाली कर्ण्ााली चिसापानी बहुउद्देशीय परियायेजना को क्यों नहीं दातृ देशों के सहयोग से साकार रूप प्रदान किया जा रहा है – दातृ देशों के सहयोग से परियोजना को यदि क्रियान्वित करने का प्रयास करें तो निश्चय ही लुभावना नारा ‘उज्यालो नेपाल, समृद्ध नेपाल’ को साकार कर सकते हैं । और लोडसेडिंग जैसी विकराल समस्या से नेपाली जनता को उन्मुक्ति दिला सकते हैं । पर ऐसा नहीं होगा । सरकार को चाहिए कि नीति और कार्यक्रम को राजनीतिक खींचातानी से ऊपर उठा कर क्रियान्वित करे । लोडसेडिंग के कारण उद्योग जगत बहुत ही शोचनीय अवस्था से गुजर रही है । इस दिशा में हमें भूटान देश से शिक्षा लेनी होगी । जलविद्युत् परियोजना के विकास के कारण ही भूटान आर्थिक विकास कर रहा है । नेपाल सरकार को भी देर सबेर इस दिशा में ठोस नीति लानी ही होगी । इस के अभाव में समृद्ध नेपाल का सपना विपन्न नेपाल में बदलना निश्चित है ।
निजगढÞ में बनने वाला दूसरा बडÞा विमानस्थल और काठमांडू तर्राई प्रदेश को जोडÞने वाला द्रुत मार्ग निर्माण वाली नीति तथा कार्यक्रम विगत पाँच वर्षों से बजट में समावेश होता आ रहा है । द्रुत मार्ग की गति आगे बढÞी पर ठोस नीति के अभाव में मन्थर हो रुकी हर्ुइ है । अब रही निजगढ विमानस्थल निर्माण कार्य की बात, तो इस का भी भविष्य अधर में लटका है ।
नेपाल कृषि प्रधान देश माना जाता है । ६५ प्रतिशत जनता कृषि पर आधारित है, विडम्बना यह है कि अधिकांश कृषि भूमि सिचाई के अभाव में बंजर बनी हर्ुइ है । कृषि पर आधारित युवा वर्ग विदेश पलायन कर रहे हंै । जिसे रोकने के लिए आकर्ष कार्यक्रम लाने की जरूरत है । सरकार खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए ‘कृषि क्रान्ति दशक’ मनाने की घोषणा तो करती है, पर कृषि क्षेत्र में व्याप्त समस्या समाधान करने में अर्समर्थ रहती है, क्या ऐसी स्थिति में नारा से समस्या समाधान होने वाला है –
शिक्षा-स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो और भी भयावह स्थिति विद्यमान है । शैक्षिक नीति की अदूरदर्शिता के कारण शिक्षा क्षेत्र बद से बदतर होता जा रहा है । शिक्षा स्वास्थ्य का सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप में आम नागरिक से है । प्रवेशिका परीक्षा परिणाम शैक्षिक अवस्था और सामुदायिक विद्यालयों की नाजुक अवस्थाओं का द्योतक है । शिक्षा के नाम पर प्राइवेट विद्यालयों के द्वारा अभिभावकों, विद्यार्थियों और शिक्षकों का जो शोषण कार्य किया जा रहा है, वह विशेष चिन्ता का विषय है । इस ओर सरकार को चाहिए कि शैक्षिक नीतियों और कार्यक्रमों में आमूल परिवर्तन कर ऐसे विद्यालयों के ट्रस्टी पर नकेल कसा जाए और शैक्षिक शोषण को रोका जाए । ऐसा करने पर ही शिक्षा, समाज और राष्ट्र के हित में प्रभावोत्पादक हो सकती है, अन्यथा नहीं । स्वास्थ्य क्षेत्र भी चिकित्सकों और कुकुरमुत्तों की तरह उदीयमान हो रहे नर्सिंग होम बीमारी के नाम पर जनता का आर्थिक शोषण कर रहे हैं । इस पर भी सरकार की ओर से ठोस नीति और प्रभावी कार्यक्रम लाने की जरूरत है । शिक्षा-स्वास्थ्य दोनों क्षेत्र में माफियों का राज है, जिसे नियन्त्रण करना सरकार का प्रमुख कर्तव्य है ।
उपर्युक्त समस्याओं का समाधान सरकार करना चाहती है तो उसे बजट के माध्यम से ठोस नीति और प्रभावकारी कार्यक्रम को लाना होगा । नीति और कार्यक्रम लाने मात्र से काम नहीं चलेगा । कार्यान्वयन को सुचारुता प्रदान करने की दिशा में मनसा, वाचा, कर्मणा अग्रसरता दिखानी होगी । विकास के पर्ूवाधार के रूप में शिक्षा, स्वास्थ्य, जलविद्युत् परियोजना, पर्यटन, कृषि उत्पादन, यातायात, औद्योगिकीकरण, वन संरक्षण आदि को व्यवस्थित पारदर्शी, गुणस्तरीय, आत्मनिर्भर बनाने के लिए, बेरोजगारी समस्या समाधान के लिए लागू नीति, ठोस कार्यक्रम तथा दूरदर्शी योजना लाकर कार्यान्वयन करें तो अवश्य ही राष्ट्र उन्नति कर सकता है ।