मधेश में चीन के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश : पंकज दास
पंकज दास, काठमांडू ,२३ सेप्टेम्बर | नेपाल में मधेशी के अधिकार की कटौती करते हुए आए संविधान का भारत ने ना सिर्फ विरोध किया बल्कि मधेश आन्दोलन के समर्थन में भारत ने एक नहीं दो-दो विज्ञप्तियां जारी की। राज्य आतंक से डर कर हजारों मधेशी नागरिक भारत के संरक्षण में सुरक्षित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मधेश आन्दोलन में हो रहे क्रूर दमन और हत्या हिंसा को लेकर भारत ने अपनी सख्त नाराजगी जताई है। भारतीय सीमा क्षेत्रों के रहने वाले लोग मधेश आन्दोलन का खुल कर समर्थन कर रहे हैं।
इसके ठीक विपरीत चीन ने नेपाल के नए संविधान का स्वागत किया है। मधेश विरोधी संविधान लाए जाने के बावजूद चीन ने तीन बडे दलों की प्रशंसा की है। संविधान को जबरन लादे जाने पर कोई आपत्ति जताने के बदले खुशी जताई है। चीन के इस कदम से मधेशी जनता में गुस्सा उठना स्वाभाविक है। गुस्साए युवकों ने सुनसरी में कल चीन के विरोध में प्रदर्शन भी किया। उनका झंडा भी जलाया।
मधेश में चीन के खिलाफ गुस्सा और आक्रोश स्वाभाविक है। लेकिन इससे मधेशी मोर्चा के कुछ नेताओं को इतना गुस्सा क्यों आया? मधेशी मोर्चा के नेताओं का चीन के प्रति मोह और आकर्षण देख कर आज मैं बहुत आश्चर्यचकित हूं। मधेशी मोर्चा की बैठक में चीन के झंडा को जलाए जाने को लेकर उपेन्द्र यादव ने जो तांडव रूप दिखाया वह पहाडी शासकों द्वारा भारत के खिलाफ जहर उगलने पर क्यों नहीं दिखाया?
मधेशी मोर्चा के विज्ञप्ति में चीन के झंडा जलाए जाने को लेकर विरोध किया गया है। उसकी आलोचना की गई है। उस पर दुख व्यक्त किया गया है लेकिन भारत के खिलाफ #BackOffIndia का ट्रेंड चलाने का विरोध क्यों नहीं किया गया? काठमांडू सहित कई पहाडी इलाकों में भारत के खिलाफ हो रहे जुलुस प्रदर्शन का विरोध क्यों नहीं किया गया? मधेशी मोर्चा के नेताओं का एहसान फरामोश आन्दोलन को नुकसान कर सकता है।
अगर मोर्चा के नेताओं में जरा भी शर्म बांकी है, अगर उपेन्द्र यादव में थोडी भी नैतिकता बांकी है तो भारत से आन्दोलन में सल्लाह और समर्थन लेना बन्द करे। अगर उपेन्द्र यादव में हिम्मत है तो मधेश आन्दोलन में चीन से समर्थन लेकर दिखाए। और अगर उपेन्द्र यादव के इशारो पर ही मधेशी मोर्चा को आगे बढाना है तो महंथ ठाकुर, हृदयेश त्रिपाठी, राजेन्द्र महतो और महेन्द्र यादव अपनी अपनी पार्टी को उपेन्द्र यादव की पार्टी में विलय कर ले।
जब चीन को ही खुश करना है, जब चीन की ही चिंता करनी है, जब चीन के इशारो पर ही आन्दोलन की रूप रेखा तय करनी है तो क्यों भारत बिना मतलब सरदर्द ले रहा है। क्यों भारतीय राजदूत सुबह से शाम तक बालुवाटार में मधेशियों के लिए अपना समय नष्ट कर रहे हैं? क्यों भारतीय विदेश मंत्रालय मधेशी के हक अधिकार के लिए इतनी माथापच्ची कर रहा है?
इस बार का आन्दोलन यदि असफल होता है तो इसके लिए उपेन्द्र यादव की कुटिल चाल, महन्थ ठाकुर की खामोशी, राजेन्द्र महतो की अदूरदर्शिता और महेन्द्र यादव की नादानी ही जिम्मेवार होंगे।