बांग्लादेश की स्थिति पर नेपाल की कूटनीतिक पहल हो : श्वेता दीप्ति
डॉ श्वेता दीप्ति, अंक अगस्त २०२४ (सम्पादकीय) । जब भी किसी आंदोलन में उपद्रवी तत्व घुल मिल जाते हैं और उनका कोई लीडर नहीं होता है तो, उस आन्दोलन का स्वरूप बदल जाता है और वह आन्दोलन हिंसक रूप ले लेता है । उस स्थिति में असल मुद्दों से लोग दूर हो जाते हैं, उनका मकसद धूमिल हो जाता है और पीडि़त होते हुए भी वही लोग सबसे बड़े खलनायक के रूप में सामने आते हैं । बांग्लादेश में अभी यही देखने को मिल रहा है । आरक्षण के विषय को लेकर आन्दोलन की शुरुआत तो कुछ छात्रों ने की थी, लेकिन बाद में कई कट्टरपंथी संगठनों ने आंदोलन अपने हाथों में लिया और स्थिति बिगड़ती चली गई । परिदृश्य ऐसा है कि अफगानिस्तान के तालिबान और बांग्लादेश के उपद्रवी में कोई अंतर नहीं दिख रहा है । बांग्लादेश में जो हुआ उसमें तो यह स्पष्ट दिख रहा है कि वहाँ लोकतंत्र की हत्या हुई है । ऐसे में वहाँ जो कुछ हुआ उसका विश्व का कोई भी राष्ट्र आँख मूंद कर समर्थन नहीं कर सकता । क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा ही शांति व्यवस्था को कायम रख सकता है ।
बांग्लादेश आंदोलन के दौरान नेपाल में बांग्लादेशी छात्रों के समर्थन में कुछ प्रदर्शन और बयान हुए थे । जैसे ही बांग्लादेश आंदोलन सफल हुआ, सोशल मीडिया विशेषज्ञों और कई राजनीतिक व्यक्तित्व और दलों ने अराजक संदेश फैलाना शुरु किया कि नेपाल में भी ऐसा ही आंदोलन होना चाहिए । लोग बांग्लादेश और नेपाल की आरक्षण व्यवस्था, औचित्य और प्रक्रिया को समझे बिना अपना वक्तव्य दे रहे थे ।
नेपाल और बांग्लादेश की राजनीतिक परिस्थितियाँ बिल्कुल अलग हैं । ऐसे में नेपाल में इस तरह के आन्दोलन का कोई औचित्य नहीं है । नेपाल के लिए जरूरी है कि वह बांग्लादेश के आंदोलन को उनका आंतरिक मामला माने और वहाँ लोकतंत्र की बहाली का कूटनीतिक संदेश दे । हालाँकि, इस परिवर्तन के भू-राजनीतिक प्रभाव के संबंध में, नेपाल के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी सुरक्षा, पड़ोसी संबंधों और शक्तिशाली देशों की संभावित प्रतिस्पर्धा का आकलन करे और गुटनिरपेक्षता और पंचशील के अपने सिद्धांतों को मजबूत तरीके से दिखाए ।
बांग्लादेश का आंदोलन बांग्लादेश की चिंताओं और मुद्दों को लेकर है । उनका जन्म एक दशक से भी अधिक समय की पृष्ठभूमि में वहीं हुआ है । इस स्थिति में नेपाल में इससे सीख लेना या सीखने की कोशिश करना सिर्फ अराजकता है । किन्तु बांग्लादेश में वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ जो अत्याचार हो रहा है, उस पर सरकार को पहल अवश्य करना चाहिए ।
एक सजग राष्ट्र की तरह, बांग्लादेश की वर्तमान परिस्थितियों पर नेपाल का नजर रखना आवश्यक है क्योंकि बांग्लादेश भौगोलिक दृष्टि से नेपाल की सीमा के बाहर सबसे कम दूरी वाला देश है । नेपाल ने बांग्लादेश की आजादी के तुरंत बाद राजनयिक संबंध स्थापित किए थे, जो आज भी कायम है । बांग्लादेश दुनिया के घनी आबादी वाले देशों में से एक है, भौगोलिक दृष्टि से हिमालय से निकलने वाली सभी नदियों का जलक्षेत्र तटीय क्षेत्र है । इसके अलावा यह हिन्द महासागर और सबसे उत्तरी अक्षांश का निम्न दबाव क्षेत्र भी है । अतः बांग्लादेश का स्थान अर्थात बंगाल की खाड़ी, जो इससे जुड़ी हुई है, आर्थिक एवं सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूणर् है ।
नेपाल और बांग्लादेश के बीच संबंध आपसी समझ और सामान्य मूल्यों पर आधारित हैं । द्विपक्षीय संबंधों में दोनों देशों की वस्तुनिष्ठ आकांक्षाओं को काफी समर्थन मिला है । इसलिए, एक साझा हित के रूप में, नेपाल और बांग्लादेश सार्क, बिम्सटेक और बीबीआईएन सहित विभिन्न क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सभी मुद्दों पर एक साथ हैं । नेपाल और बांग्लादेश के बीच अर्थव्यवस्था और वाणिज्य के क्षेत्र में भी विभिन्न स्तरों पर सहयोग का विस्तार किया जा रहा है । इस परिस्थिति में वहाँ जो कुछ भी हो रहा है या होने वाला है उसपर कूटनीतिक दृष्टिकोण से नेपाल को दिलचस्पी लेना होगा । बांग्लादेश में शांति और लोकतंत्र की बहाली, नेपाल के लिए भी आवश्यक है । नेपाल के मेडिकल छात्र जो बांग्लादेश में अध्ययनरत हैं, उनका भविष्य भी फिलहाल दांव पर लगा है । उस ओर भी सरकार को पहल करनी होगी ताकि इन युवाओं का भविष्य सुरक्षित हो सके ।