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 रविदास जयंती
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
परमात्मा भी जब जब धरा पर पाप बढ़ते है तो भारत मे ही साधारण तन में आकर जगत का कल्याण करते है।अवतरित संतो में एक महान संत हुए है गुरु रविदास जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी के निकट सीर गोबर्धनगाँव में हुआ था। इनकी माता कलसा देवी व पिता संतोख दास थे,बहुत ही गरीबी में अपना जीवन यापन करते थे।लेकिन एक सरपंच के रूप में उनकी बहुत ख्याति भी थी।गुरु रविदास का जन्म सन1376-77 के आस पास हुआ था, ऐसा बताते है कुछ लोग सन 1399 में तो कुछ दस्तावेजों के अनुसार संत रविदास ने सन1450 से 1520 के बीच अपना जीवन इस धरा पर बिताया ।
गुरु रविदास के पिता जूते बनाने व पुराने जुते ठीक करने का काम करते थे। रविदास  बचपन में बहुत कुशाग्र व भगवान् को मानने वाले एक अच्छे बालक रहे। उन्हें उच्च कुल वालों के कारण हीन भावना का शिकार होना पड़ता था, गुरु रविदास ने समाज को बदलने के लिए अपनी कलम का सहारा लिया, वे अपनी रचनाओं में अच्छे जीवन के बारे में लोगों को समझाते थे।लोगों को शिक्षा भी देते थे कि व्यक्ति को बिना भेदभाव के सबसे अपने समान प्रेम करना चाहिए। रविदास ने  गुरु पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में शिक्षा प्राप्त की। पंडित शारदा नन्द ने रविदास की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें  भगवान द्वारा भेजा हुआ एक बच्चा बताया और उन्हें शिक्षा दी।  रविदास एक प्रतिभाशाली और मेहनती छात्र थे, उनके गुरु जितना उन्हें पढ़ाते थे, उससे ज्यादा वे अपनी समझ से शिक्षा गृहण कर लेते थे।पंडित शारदा नन्द अपने शिष्य रविदास से बहुत खुश रहते थे, उनके आचरण और प्रतिभा को देख वे सोचा करते थे कि रविदास एक दिन उच्चकोटि का आध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगा।उनके गुरु की यह सोच संत रविदास के प्रतिष्ठित होने पर चरितार्थ भी हुई।
रविदास के साथ पाठशाला में पंडित शारदा नन्द  का बेटा भी पढ़ता था, वे दोनों अच्छे मित्र थे। एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल रहे थे,रात हो जाने पर बच्चों ने अगले दिन फिर से खेलना तय किया। दुसरे दिन सुबह रविदास खेलने के लिए आ गए लेकिन उनका गुरुभाई मित्र नहीं आया। तब वे उसके घर गए तो पता चला कि रात को उनके मित्र की मृत्यु हो गई थी। यह पता चलते ही शोक में डूबकर रविदास सुन्न हो गए है, तब उनके गुरु शारदा नन्द  उन्हें मृत मित्र के पास ले गए रविदास अपने मृत मित्र से कहते है कि ये सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो।यह सुनते ही उनका मृत मित्र पुनः जीवित होकर खड़ा हो गया। जिससे हर कोई अचंभित हो गया ।रविदास  जैसे जैसे बड़े हुए भगवान राम के रूप के प्रति उनकी भक्ति बढ़ती गई। वे हमेशा राम, रघुनाथ, राजाराम चन्द्र, कृष्णा, हरी, गोविन्द आदि शब्दो का उपयोग करते थे,जो उनके धार्मिक होने का प्रमाण है।संत
रविदास उस समय की कृष्ण भक्त मीरा बाई के धार्मिक गुरु भी थे।  मीरा बाई राजस्थान के राजा की बेटी और चित्तोर की रानी थी। वे रविदास की शिक्षा से बहुत प्रभावित थी और वे रविदास की एक बड़ी अनुयायी बन गई । मीरा बाई ने अपने गुरु के सम्मान में कुछ पक्तियां भी लिखी थी,  ‘गुरु मिलया रविदास जी..’ । मीरा बाई अपने दादा के साथ रविदास से मिलती रहती थी।एक दिन बार संत रविदास अपनी कुटिया में बैठे प्रभु स्मरण के साथ अपना कार्य कर रहे थे, तभी एक ब्राह्मण  उनकी कुटिया पर आया और उनसे बोला कि वह गंगा स्नान करने जा रहा है, रास्ते में आपकी कुटिया दिखाई दी तो दर्शन करने चला आया।
रविदास ने कहा कि आप गंगा स्नान करने जा रहे हैं, यह एक मुद्रा है, इसे मेरी तरफ से गंगा मैया को दे देना। ब्राह्मण जब गंगा तट पहुंचा और स्नान करके जैसे ही रुपया गंगा में डालने को उद्यत हुआ तो गंगा नदी में से गंगा मैया ने जल में से अपना हाथ निकालकर वह रुपया ब्राह्मण से ले लिया तथा उसके बदले ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया।ब्राह्मण जब गंगा मैया का दिया कंगन लेकर लौट रहा था तो वह नगर के राजा से मिलने चला गया। ब्राह्मण को विचार आया कि यदि यह कंगन राजा को दे दिया जाए तो राजा बहुत प्रसन्न होगा। उसने वह कंगन राजा को भेंट कर दिया। राजा ने बहुत-सी मुद्राएं देकर उसकी झोली भर दी।
ब्राह्मण अपने घर चला गया। इधर राजा ने वह कंगन अपनी महारानी के हाथ में बहुत प्रेम से पहनाया तो महारानी बहुत खुश हुई और राजा से बोली कि कंगन तो बहुत सुंदर है, परंतु यह क्या एक ही कंगन है, क्या आप ऐसा ही एक और कंगन नहीं मंगा सकते?
राजा ने अपनी रानी को ऐसा ही एक और कंगन  मंगवा कर देने का भरोसा दिया। राजा ने उसी ब्राह्मण को खबर भिजवाई कि जैसा कंगन मुझे भेंट किया था वैसा ही एक और कंगन उन्हें तीन दिन में लाकर दो वरना राजा के दंड भोगना पड़ेगा। यह सुनते ही ब्राह्मण के होश उड़ गए। वह पछताने लगा कि मैं व्यर्थ ही राजा के पास गया,अब दूसरा कंगन कहां से लाऊं?  वह रविदास की कुटिया पर पहुंचा और उन्हें पूरा वृत्तांत बताया कि गंगा ने आपकी दी हुई मुद्रा स्वीकार करके मुझे एक सोने का कंगन दिया था, वह मैंने राजा को भेंट कर दिया था। अब राजा ने मुझसे वैसा ही कंगन मांगा है, यदि तीन दिन में राजा को दूसरा कंगन नहीं दिया तो राजा उन्हें कठोर दंड देगा।
 यह सुन संत रविदास ने अपनी वह कठौती उठाई जिसमें वे चर्म गलाते थे। उसमें जल भरा हुआ था।उन्होंने गंगा मैया का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का तो गंगा मैया प्रकट हो गई।रविदास के आग्रह पर गंगा ने एक और कंगन ब्राह्मण को दे दिया। ब्राह्मण खुश होकर राजा को वह कंगन भेंट करने चला गया, ऐसे थे महान संत थे गुरु रविदास ।
 ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’
संत रविदास की यह कहावत बहुत प्रसिद्ध है। इस कहावत के द्वारा संत रविदास मन की पवित्रता पर जोर देते हैं। सन्त रविदास कहते हैं, जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा एक कठौती में भी आ जाती हैं।यह बात संत रविदास ने सिद्ध भी की।वही रविदास कहते है,
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।
।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आध्यात्मिक चिंतक है)
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

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