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त्रि.वि.में उपकुलपति–चयनः पक्षपात तो नही ! : अंशुकुमारी झा

अंशुकुमारी झा, हिमालिनी अंक फरवरी । त्रिभुवन विश्वविद्यालय नेपाल का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है । राजा त्रिभुवन के सपना को साकार करने के लिए उनकी महारानियाँ कान्ति और ईश्वरी ने विक्रम संवत् २०१६में इस विश्वद्यिालय की स्थापना की थी । फिलहाल किसी भी दृष्टिकोण से त्रि । वि । की अवस्था बहुत अच्छी नहीं है । इसका मुख्य कारण है विश्वविद्यालय में गंदी राजनीति का वर्चस्व । देश के जो मुख्य राजनीतिक दल हैं उनको हरेक विश्वविद्यालयों में पदाधिकारी पद का हिस्सा चाहिए । यह सुनने में ही कितना अजीब लगता है, जहाँ माँ सरस्वती की आराधना की जाती है, बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण कर राष्ट्र को ऊँचे दर्जे तक ले जाते हैं अर्थात् वहीं से देश का भविष्य निर्माण होता है और वहीं पर राजनीति का नंगा प्रदर्शन होता है ।



अभी त्रिभुवन विश्वविद्यालय में उपकुलपति का पद रिक्त है । देश में गठबन्धन की सरकार है । प्रधानमन्त्री के पद पर नेपाली माओवादी पार्टी से पुष्पकमल दहाल जी विराजमान हैं । उन्होंने इस बार यह घोषणा की है कि हमारे कार्यकाल में विश्वविद्यालय में राजनीतिक बटवारा नहीं होगा । योग्यता के अनुसार उपकुलपति का चयन किया जायेगा । सच में, अगर उनकी यह घोषणा कार्यान्वयन हो जाए तो विश्वविद्यालय की दशा सुधारोन्मुख हो सकती है । कुछ महीने पहले उपकुलपति पद के लिए एक खुला विज्ञापन निकाला गया था जिसमें कुछ प्रक्रिया के तहत उपकुलपति चयन की बात लिखी गई थी । उसमें और सब तो जो था वो था परन्तु एक बिन्दु में यह लिखा गया था कि उपकुलपति का उम्मिदवार वही हो सकता हैं जो त्रि वि के किसी पदाधिकारी पद पर तीन वर्षो तक काम किया हो । जबकि किसी भी पदाधिकारी का कार्यकाल चार वर्ष का होता है । इससे यह स्पष्ट होता है कि उपकुलपति का पद किसी खास व्यक्ति के लिए है । जिसकी बहुत ंिनदा हुई फिर वह विज्ञापन रद्द कर दिया गया । फिर दूसरा विज्ञापन निकाला गया जो पूर्णरुपेण खुला था । उक्त विज्ञापन में उपकुलपति पद के लिए खुद को योग्य समझते हुए कुल ४३ प्रतिस्पद्र्धियों ने आवेदन दिया । यह प्रक्रिया पहली बार हो रही है इससे पहले कभी भी उपकुलपति का चयन प्रतिस्पद्र्धा के द्वारा नहीं हुआ था । जब भी राजनीतिक नियुक्ति ही हुई थी । परन्तु यह जो ४३ उम्मीदवार हैं इनके व्यक्तित्व को अगर बारीकी से देखा जाय तो किसी न किसी रूप में राजनीति से जुड़े ही मिलेंगे । प्रधानमन्त्री ने सार्वजनिक प्रतिबद्धता जताया है कि विश्वविद्यालय को राजनीति से अलग रखेंगे । बटवारा के आधार पर पदाधिकारियों का चुनाव नहीं करेंगे परन्तु शिक्षाविदों का कहना है कि प्रतिभागी जितने भी चेहरे हैं कोई भी राजनीति से अछुते नहीं हैं । इस विषय पर प्रश्न उठना स्वभाविक है ।
शिक्षा, विज्ञान तथा प्रविधि मन्त्रालय के कमरा नम्बर ३०४ के अन्दर उपसचिव तेज प्रकाश प्रसाईं ने बहुत कसरत के बाद गोप्य रूप से ४३ उम्मीदवारों में से १४ उम्मीदवारों की शॉर्ट लिस्ट निकाल चुके हैं । सरकार ने उपकुलपति नियुक्ति के लिए चयन तथा सिफारिस समिति गठन की थी जिसके तहत ४३ लोगों का आवेदन स्वीकार किया गया था । उक्त आवेदनों का मूल्यांकन कर शॉर्ट लिस्ट करना उपसचिव प्रसाई के हाथ में था । उक्त कार्यविधि के अनुसार कुल आवेदनकर्ता में से एक तिहाइ अथवा अधिक अङ्क प्राप्त करने वाले १५ लोगों का नाम शॉर्ट लिस्ट में निकालना था । मन्त्रालय के स्रोत के अनुसार मूल्यांकन में आवेदनकर्ताओं के आईएसबीएन वाली पुस्तक में कोई समस्या नहीं हुई परन्तु रिसर्च पेपर में नम्बर देना आसान नहीं था । समस्या यह थी कि मुख्य रिसर्चर है कि सहायक रिसर्चर है । मुख्य रिसर्चर को पूर्णांक मिला परन्तु सहायक को नहीं ।

प्रत्येक आवेदनकर्ताओं का पेपर कोडिङ करने के बाद ही विज्ञों को जाँच के लिए दिया गया था ताकि उन्हें यह पता नहीं चले कि उक्त पेपर किसका है । शिक्षामन्त्री अशोकुमार राई अध्यक्षता की समिति द्वारा ४३ लोगों में से शॉटलिष्ट कर १४ लोगों का नाम चयन कर सार्वजनिक किया गया । जिस पर पूर्व उपकुलपतियों ने आग्रह करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय नेतृत्व विहीन है उत्कृष्ट उम्मीदवार का नाम यथाशीघ्र सिफारिस किया जाय ।

सही में अगर विश्वविद्यालयों के नेतृत्व चयन में अदृश्य रूप में राजनीतिक बटवारा ही प्रश्रय पाता है तो शिक्षा की अवस्था और भी कमजोर होती जायेगी । ऐसे भी दिन प्रति दिन विद्यार्थियों की संख्या घटतीजा रही है और आगे के आसार भी अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं । कुछ विज्ञों का मानना है कि यह खुला प्रतिस्पद्र्धा सिर्फ नाम के लिए है अन्त में बटवारा ही निश्चित है । यह आशंका सही है या गलत नतीजा आने पर पता चल जायेगा । वैसे सरकार द् वारा नियुक्त उपकुलपति चयन समिति दावे के साथ कह रही है कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष और विश्वसनीय ढंग से होगी । उपकुलपति नियुक्ति में राजनीतिक प्रश्रय से ज्यादा प्रभावकारी प्राज्ञिक प्रश्रय होगा । जिसमें विश्वविद्यालय को ईमानदारी पूर्वक चलाने की क्षमता हो उसका चुनाव अति उत्तम होगा ।

बात यह भी है, ईमानदार और अच्छे उपकुलपति का चयन कर लेना भी समस्या का समाधान नहीं है । उसके अनुकुल अन्य पदाधिकारियों को भी ईमानदार और अच्छा होना पड़ा, तभी तो हरेक कार्यों में एकरूपता होगी । इसके लिए राज्य को अग्रसरता दिखाना होगा ।

चयन समिति ने कुसुम शाक्य, केशरजंग बराल, गोविन्द सुवेदी, चित्रबहादुर बुढाथोकी ज्ञानेन्द्रप्रसाद पौड्याल, टंकनाथ धमला, तीर्थराज खनियाँ, नारायणप्रसाद बेलबासे, प्रकाश घिमिरे, भोजराज अर्याल, महेन्द्रप्रसाद शर्मा, रामचन्द्र बस्नेत, शिवलाल भुसाल, सूर्यबहादुर थापा का नाम शॉर्टलिष्ट में सार्वजनिक किया है । इनमें से अन्तरवार्ता के पश्चात ३ लोगों को चयन किया जायेगा और उनका नाम कुलपति तथा प्रधानमन्त्री के पास सिफारिस के लिए भेजा जायेगा । कुलपति उसमें से एक योग्य व्यक्ति को चुनेंगे इसके बाद त्रिभुवन विश्वविद्यालय में २०वें उपकुलपति की नियुक्ति होगी ।
समग्र में त्रि वि के उपकुलपति पद पर जो भी आए वो सक्षम और योग्य हो । त्रि वि के सम्पूर्ण शिक्षक, कर्मचारी और विद्यार्थियों से सम्बन्धित कार्य समस्या को वो नजर अन्दाज नहीं करें । किसी विशेष राजनीतिक दल की कठपुतली बनकर न रहें । शिक्षा में सुधार लाने के लिए हरेक कार्यविधि पर निगरानी रखें । फिलहाल विश्व स्तर पर त्रिभुवन विश्वविद्यालय की शाख डगमगायी हुई है उसमें सुधार लाने की आवश्यकता है ।



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