Thu. May 2nd, 2024

संविधान दिवस….. कैसी खुशी, कैसी दीपावली !



काठमांडू, ३ असोज
जब कभी नेपाल की राजनीति की बात आती है । या जब कभी लोग नेताओं के भाषण से आर्थिक मंदी से, देश की अवस्था से, यहाँ की बेरोजगारी से, बढ़ती मंहगाई से तंग आते हैं तो सभी एक स्वर में कहते हैं कि न जाने अच्छे दिन कब आएंगे ? कौन अच्छा दिन लाएंगा ? किसके हाथों में आने वाले समय में देश की डोर पकड़ई जाएंगी ? कौन देश को विकास की ओर ले जाएगा ? सच मानिए तो हमारे पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो देश में अच्छा दिन ला सके । हम न्यूट्रल हो गए हैं । खासकर आम नागरिक ।

क्लिक करें

मंहगाई चरम सीमा पर हैं हम चुप हैं । भ्रष्टाचार पराकाष्ठा पर है हम चुप हैं ? सरेआम डॉक्टरों को पीटा जा रहा है, हम चुप है । क्यों ? तो हम सोचते हैं कि ये बातें हमरे लिए कोई मायने नहीं रखती हम क्यों फिजुल में इन पचड़ों में पड़े । लेकिन हम ये उम्मीद करते हैं कि लोग बाहर आएं, हाय तौबा मचाएं, आंदोलन करें, ताकि देश की अवस्था में सुधार हो, देश एक नया रुप लें । इतिहास ही की बात करें तो सभी जानते हैं कि इतिहास को बदलने की शक्ति, या फिर सत्ता परिवत्र्तन की शक्ति, भीड़ को लीड करने की शक्ति युवाओं में है और हमारा देश….तो युवा विहीन हैं । कुछ दिनों के बाद तथ्यांक यही आने वाला है कि नेपाल विश्व का पहला देश है जो युवा विहीन देश है ।
ऐसे देश में हम आज असोज तीन गते यानी संविधान दिवस मना रहे हैं । जिस देश में प्रतिदिन ४,००० युवा देश से बाहर जा रहा है । उस देश में हम संविधान दिवस मना रहे हैं । जो देश चरम आर्थिक संकट से गुजर रहा है, आज हम इस बात पर गौरव कर रहे हैं कि हमारे पास संविधान है । संविधान सबके लिए समान हो, समानता का भाव हो तो समझ में आता है लेकिन जिस सोच के तहत संविधान को लाया गया उसे इस देश की आधी आबादी ने मन से आज तक स्वीकार ही नहीं किया है । लेकिन किसी को कोई मतलब नहीं है वो अपना राग अलापना बंद नहीं करेंगे।
इस देश का यह दुर्भाग्य है कि जिसकी मांग मधेश के लोग शुरु से करते आ रहे थे उसकी कहीं कोई चर्चा नहीं थी । २०७२ से लेकर आज तक मधेश की जनता ने ही नहीं, इस देश की और जनता ने भी इसे स्वीकार नहीं किया । तथापि संविधान जारी की गई और इसका कार्यान्वयन हो रहा है ।
हम २०७२ साल को याद करें तो हम भूकंप की दहशत से लड़ रहे थे । चारों ओर से जनता निराश थी, सरकार ने आँखें मूंद ली थी, सच कहें तो जनता अकेले लड़ रही थी इस दहशत से और सभी नेता चुपचाप संविधान को लाने की तैयारी कर रहे थे । गौर करने वाली बात यह है कि जब कभी जनता बहुत परेशान होती है । वो अपेक्षा करती है अपनी सत्ता में बैठे लोगों से । जिन्हें जनता ने चुनकर अपने लिए काम करने के लिए भेजा है उसकी तरफ आस भरी निगाह से देखती है तो सरकार जनता को एक नया खिलौना दे देती है या कुछ ऐसी हरकत करती है कि आम आदमी एक समस्या से से जुझ रहा होता है कि एक और समस्या सामने आ जाती है । पहला भूलकर वह दूसरी में उलझ जाती है । यानी ये राजनीति यहाँ खेली जाती है कि आप असली बातों तक पहुँच ही नहीं पाते हैं । सच कहें तो इसे बरगलाना कहा जा सकता है । तो २०७२ साल से लेकर आज तक हमें यानी आम नागरिक को बरगलाया ही जा रहा है । संविधान को उस समय जारी किया गया जब जनता नाराज, हैरान, परेशान थी । मधेश की जनता आज भी इसे काला दिवस के रुप में मनाती आ रही है ।
नेपाल सरकार की बात करें तो आज आसिन ३ गते उसने पूरे देश में सरकारी छुट्टी दी है और देश की जनता से आग्रह किया है कि आज संविधान दिवस के अवसर पर आप अपने घरों में दीवाली मनाएं । खुशियां मनाए, लेकिन क्या ये संभव है ? क्या भ्रष्टाचार , नातावाद , जातिवाद, बेरोजगारी , गरीबी से आक्रांत देश के लोग जो इन सभी संकटों से गुजर रहे हैंं इस खुशी में शामिल हैं ? नहीं । तो फिर कैसा संविधान दिवस ? कैसी खुशी ? कैसी दीपावली?

 



About Author

यह भी पढें   इलाम–२ में एमाले आगे
आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: