तुम शरदचंद्र की पूर्णिमा : प्रीति शर्मा “असीम”
तुम शरदचंद्र की पूर्णिमा ।
मैं धरा का.....एक दिया।।
मेरे जहन की रोशनी में,
प्रेम- सा नित झिलमिला।
तुम शरदचंद्र की पूर्णिमा।
मैं धरा का.......एक दीया।
तुम हो ख्वाब जन्नत का।
मैं मरगट में........बसा।।
मेरे विचारों को क्षितिज दे।
मुझ में............. समा।।
तुम हो आफताब का नूर।
मैं धरा की निर्जीव धूल।।
तुम शरदचंद्र की पूर्णिमा।
मैं धरा का.......एक दीया।।
तुम प्रेम की अमिट कथा।
मैं विरहा की एक व्यथा।.
मुझको अमर रस प्रेम दे।
अमर गीत रस प्राण बन।।
@प्रीति शर्मा “असीम”
नालागढ़ हिमाचल प्रदेश
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