जरूरत है अपनी शक्ति को जानने और पहचानने की : निक्की शर्मा रश्मि
हिमालिनी, अंक मार्च २०२१ | मेंरा नाम निक्की शर्मा रश्मि है और मैं बिहार भागलपुर से हूँ । वर्तमान में मुंबई में रहती हूँ और कारोबार में पति के साथ हूँ । लेखन बचपन से शौक रहा है यही वजह है व्यस्तता के बावजूद लेखन दिल में रची बसी है । कविता, कहानी, लेख, दोहे, गÞजÞल लिखने की कोशिश हमेशा रहती है । पत्र पत्रिकाओं में रचना भारत के साथ–साथ अमेरिका, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा, नेपाल, जापान, काठमांडू, यूएसए न्यूजीलैंड में भी प्रकाशित होती रही है ।
लेखन में रुचि बचपन से थी । मेरे दादा जी को लेखन करते मैंने बचपन से देखा था । वह काफी सक्रिय रहते थे लेखन में । शायद उन्हीं की देन है जो मुझ में यह रूचि पैदा हुई ।
लिखने के लिए मैंने कोई शिक्षा नहीं ली है लेकिन दोहे, गÞजÞल कुछ विधाओं में लगातार सीखने की कोशिश विशेषज्ञों से करती हूँ । कई तरह के समूह है जो इस तरह की विधा सिखाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं इसलिए कुछ नया सीखने की कोशिश जरूर रहती है ।
परिवार में मां और बड़ी बहन नीतू के अलावा किसी का साथ नहीं मिला कभी । शादी के बाद पति का साथ सबसे ज्यादा रहा और आज मैं लेखन में सक्रिय भूमिका निभा रही हूँ तो इसके पीछे मेरे पति का ही हाथ रहा है । उनके हौसला अफजाई से ही मैं यहां तक पहुंच पाई हूँ और लेखन में सक्रिय रहती हूँ ।
शादी के बाद दायित्व का निर्वाह मैंने हमेशा ही किया कभी परिवार वालों को किसी चीज की कमी नहीं होने दी । इसमें पति का सहयोग बहुत ही ज्यादा रहा है । अपने लिए मुझे १२ साल शादी के बाद समय बिल्कुल नहीं मिला । सारा समय परिवार को और बिजनेस को दिया । अब बच्चे बड़े हो गए थोड़े एक–दो घंटे खुद के लिए समय निकाल कर लेखन को अपना समय देती हूँ । फिर भी आज परिवार सर्वोपरि है और उसके बाद कुछ भी ।
मेरी दो बेटियां हैं मेरी बड़ी बेटी १४ साल की है उसे खुशी होती है मेरा लेखन देखकर । स्कूल में दोहे पढ़ने थे तो उसने मेरे लिखे हुए पढ़े उसे अच्छा लगता है और छोटी बेटी ८ साल की है उसे लेखन में रुचि है । उसने दो छोटी कविताएं भी लिखी है जो मां पर लिखी थी और प्रकाशित भी हुई है । मेरी लिखी कविता वह अक्सर गुनगुनाती है । हर कविता की दो लाइन उसे जरूर याद रहती है और बच्चों का सहयोग हमेशा से ही रहा है ।
बाहर की दुनिया में सहज रहना आसान नहीं होता है सच बात है । अगर हम औरतें बाहर निकलते हैं तो पहले भी घूरती नजरें पीछा करती थी और आज भी करती हैं लेकिन फर्क इतना है कि आज कोई फर्क नहीं पड़ता मुझ पर और पड़ने भी नहीं देती हूँ इसलिए सहज रहती हूँ ।
जहाँ तक पुरुष प्रधान समाज की बात है तो मेरा मानना है पुरुष प्रधानता की शुरुआत घर से ही होती है । अगर घर में इस तरह का माहौल हो तो यह परस्पर एक दूसरे को देख कर घर के बच्चे भी सीखते हैं । अगर घर का माहौल पुरुष प्रधानता का ना हो तो आगे और यह चीजें कम होती जाती हैं । मेरे घर में हमेशा ही महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया गया है औरतों को आगे बढ़ाने की कोशिश हमेशा ही रही है । मैंने देखा है मेरी मां ने ३ बच्चों के बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई की जब हम सब खुद ही स्कूल जाते थे तो पापा का सपोर्ट, दादा जी का सपोर्ट मेरे घर में रहा और मेरे नाना जी के सपोर्ट से मेरी मामी ने भी पढ़ाई पुरी की, आफिस में तो सभी का सहयोग मिला और एक, दो प्रश्न आप प्रधानता वाले सिद्धांतों को लेकर चलने वाले पुरुष हर जगह मिलेंगे लेकिन हमें इन्हें इग्नोर कर आगे बढ़ना ही होगा । मेरे हिसाब से आज की महिलाओं को इनसब परेशानियों से निकल कर आगे आना आता है ।
महिलाएं कमजोर नहीं है अगर कमजोर होती तो इतिहास में उनका नाम दर्ज नहीं होता । शुरू से महिलाएं ताकतवर है और रहेंगी बस जरूरत है अपनी शक्ति को जानने और पहचानने की । किसी के दबाव में झुकें नहीं सही गलत का चुनाव कर आगे बढ़ते रहें । महिलाएं दूसरी महिलाओं को आगे बढ़ने की प्रेरणा दें, सहायता करें और यह कहावत की “महिला ही महिलाओं के दुश्मन होती है” इसे खत्म करने की कोशिश करें । बस यह संदेश हर महिलाओं तक पहुंचने चाहिए ।
विश्व नारी दिवस की आपको अनंत शुभकामनाएँ ।