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तालिबान की वापसी, त्रास में अफगानिस्तान डॉ. श्वेता दीप्ति

 



Taliban fighters take control of Afghan presidential palace after the Afghan President Ashraf Ghani fled the country, in Kabul, Afghanistan, Sunday, Aug. 15, 2021. (AP Photo/Zabi Karimi)

डॉ श्वेता दीप्ति, हिमालिनी अंक अगस्त 2021 ।  लगभग सौ दिनों की लड़ाई और अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा । अफगानिस्तान के इन परिस्थितियों को देखकर फिलहाल विश्व अचम्भित है । इन दिनों अफगानिस्तान में जो खूनी खेल जारी है वह रुह कँपा देने वाली है । विश्व पटल पर म्यानमार की घटना अभी ठंडी हुई भी नहीं और अफगानिस्तान में इतिहास ने फिर से अपनी कहानी दुहरा दी है । अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जा कर लेने के बाद से जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वो डरा देने वाली हैं । तालिबान के आने से लोग डरे हुए हैं । घबराहट से भरे अफगानिस्तान के लोग इस मुश्किल समय में खुद को अनाथ महसूस कर रहे हैं । सभी ने उनका साथ छोड़ दिया है, यहां तक कि उनके खुद के राष्ट्रपति उन्हें उनके ही हाल पर छोड़कर भाग गए हैं । हर ओर अफरातफरी का माहोल है आने वाले दिनों भी भयावहता को सोच कर लोग किसी भी तरह वहाँ से बाहर निकल जाना चाहते हैं । 

 

इक्कीस वर्षों के बाद अफगानिस्तान फिर से पुराने मकाम पर खड़ा है । तालिबान का उदय वर्ष १९९० के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था जब अफगानिस्तान में सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी । इसके बाद तालिबान ने अफगानिस्तान के कंधार शहर को अपना पहला केंद्र बनाया । आज फिर तालिबान ने वापस कंधार शहर की कमान अपने हाथ में ले ली है और एक बार फिर खून से सने इतिहास को याद दिलाया है । अफगानिस्तान की जमीन कभी सोवियत संघ के हाथ में थी और १९८९ में मुजाहिदीन ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया था । और इसी मुजाहिदीन का कमांडर बना था पश्तून आदिवासी समुदाय का सदस्य– मुल्ला मोहम्मद उमर । उमर ने ही आगे चलकर तालिबान की स्थापना की । आज अफगानिस्तान की जमीन को दशकों से जंग का मैदान बनाकर रखने वाले तालिबान ने खौफनाक ताकत हासिल कर ली है ।

 

तालिबान की जड़ें पाकिस्तान से फैली थीं यह सभी जानते हैं, बावजूद इसके पाकिस्तान इस बात से हमेशा इनकार करता रहा है कि तालिबान के उदय के पीछे उसका हाथ है । जबकि वास्तविकता यह है कि तालिबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ली थी और आज भी पाकिस्तान तालिबान की पूरी मदद कर रहा है ।

इसी वजह से अफगानिस्तान की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ प्रतिबंध की मांग उठने लगी थी । पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान खुलकर तालिबान के पक्ष में खड़े हैं और चीन ने तो तालिबान के लिए रेड कारपेट बिछा ही दिया है । पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का यह कहना कि आज अफगानिस्तान आजाद हुआ है उनकी सोच को दर्शाता है । अफगानिस्तान की तत्कालीन घटनाओं पर विशेषज्ञों की नजर बनी हुई है । उनका मानना है कि पाकिस्तान की सोच यह है कि अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले करके इसे इस्लामिक संगठन बना दें । लेकिन फिलहाल वह बनने वाला नहीं है क्योंकि, यह लोग लोया जिरगा (राष्ट्रीय सभा) मांग रहे है जो कि संभव नहीं लगता है ।

दरअसल लोया जिरगा अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सभा को कहा जाता है, जिसमें तमाम कबायली समहूों के नेता एक साथ बैठते है । इसकी बैठक में देश के मामलों पर विचार–विमर्श कर फैसले किए जाते है । अब देखना होगा कि अफगानिस्तान में जो नई सरकार बनती है उसका स्वरूप कैसा होगा ? अगर सिर्फ तालिबान की सरकार बनती है तो वहाँ तलिबान सिर्फ पश्तून हैं और अफगानिस्तान में कुल आबादी में पश्तून सिर्फ ४५ फीसदी है । ऐसे में बाकी ५५ फीसदी लोग शामिल नहीं होंगे तो ऐसे में सरकार कैसे चलेगी यह भी बहुत महत्वपूर्ण है ।

आइए जानें कि तालिबानी आखिर हैं कौन ?

दुनिया का सबसे कुख्यात सशस्त्र संगठन है तालिबान । इसके कई आतंकवादी संगठनों से संबंध हैं । ‘तालिबान’ शब्द का पश्तून में मतलब होता है ‘छात्र’ और इन्हें उमर का ‘छात्र’ माना गया । जिसे बाद में एक संगठन का नाम दे दिया गया । इस्लामिक कट्टरवाद में विश्वास रखते हैं । साल १९९४ में उमर ने इसी कंधार में तालिबान को बनाया था । तब उसके पास ५० समर्थक थे जो सोवियत काल के बाद गृहयुद्ध के दौरान अस्थिरता, अपराध और भ्रष्टाचार में बर्बाद होते अफगानिस्तान को संवारना चाहते थे । धीरे–धीरे यह पूरे देश में फैलने लगा । सितंबर १९९५ में उन्होंने ईरान से लगे हेरात पर कब्जा किया और फिर अगले साल १९९६ के दौरान कंधार को अपने नियंत्रण में लिया और राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया । इसके साथ ही राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी को कुर्सी से हटा दिया ।

रब्बानी अफगानिस्तान मुजाहिदीन के संस्थापकों में से एक थे जिन्होंने सोवियत ताकत का विरोध किया था । साल १९९८ तक करीब ९०% अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा था । शुरुआती दौर में अफगानिस्तान के लोगों ने तालिबान का स्वागत और समर्थन किया । इसे मौजूदा अव्यवस्था के समाधान की शक्ल में देखा गया । लेकिन बहुत जल्द उनका भ्रम टूटा जब कड़े इस्लामिक नियम लागू किए जाने लगे । चोरी से लेकर हत्या तक के दोषियों को सरेआम मौत की सजा दी जाने लगी ।

समय के साथ रुढि़वादी कट्टरपंथी नियम थोपे जाने लगे । टीवी और म्यूजिक को बैन कर दिया गया, लड़कियों को स्कूल जाने से मना कर दिया गया, महिलाओं पर बुर्का पहनने का दबाव बनने लगा । आज अगर अफगानिस्तान में सबसे अधिक कोई समुदाय सहमा हुआ है तो हंै महिलाएँ । वो अच्छी तरह जान रही हैं कि उन्हें एक बार फिर से घरों की चाहरदीवारी में कैद कर दिया जाएगा । उनकी आजादी के दिन बहुत जल्द समाप्त होने वाले हैं । इसी बीच एक वाकया बहुत अधिक चर्चित हो रहा है । सीएनएन की महिला रिपोर्टर क्लारिसा वार्ड की वायरल हो रही एक तस्वीर ने स्थिति की गंभीरता को बता रही है । तस्वीर को देखकर पता चल रहा है कि तालिबान शासन आने के साथ किस तरह से हालात बदल गए हैं । क्लारिसा सीएनएन की चीफ इंटरनेशनल करेस्पांडेंट हैं । क्लारिसा वार्ड की पहली तस्वीर तालिबान शासन लागू होने के २४ घंटे पहले की है । इस तस्वीर में क्लारिसा आम कपड़ों में नजर आ रही हैं ।

उन्होंने अपने सिर पर दुपट्टा भी नहीं रखा हुआ है । लेकिन दूसरी तस्वीर में वह बाकायदा बुरका पहनकर रिपोर्टिंग करती नजर आ रही हैं । इसमें सिर्फ उनका चेहरा दिखाई दे रहा है । यह दोनों तस्वीर ट्विटर पर वायरल हो रही हैं । ट्विटर यूजर्स दोनों तस्वीरों की तुलना कर अफगानिस्तान में महिलाओं की हालात का अंदाजा लगा रहे हैं । उधर तालिबान का दावा है कि नए शासनकाल में वह महिला अधिकारों को सुरक्षा देगा । लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट है । जैसे ही तालिबान ने काबुल में सत्ता हासिल की, शहर की दीवारों पर लगी महिलाओं के पोस्टर को पेंट करने की तस्वीरें सामने आने लगी थीं । वहीं परिवार के साथ बाजार में निकली एक महिला को तालिबान लड़ाकों ने इसलिए फटकार लगाई क्योंकि सैंडल से उसका पैर दिखाई दे रहा था । 

कब आया दुनिया की नजरों में तालिबान

दुनिया की नजरों में तालिबान अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद आया । और तब अमेरिका को भी अपनी गलती का अहसास हुआ कि वह किसे पोषित कर रहा था । अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन ११ सितंबर, २००१ के आतंकी हमले की प्लानिंग कर रहा था, तभी तालिबान ने उसे पनाह दे रखी थी । अमेरिका ने उससे ओसामा को सौंपने के लिए कहा लेकिन तालिबान ने इनकार कर दिया । इसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में घुसकर मुल्ला ओमार की सरकार को गिरा दिया । ओमार और बाकी तालिबानी नेता पाकिस्तान भाग गए । जहाँ उन्हें पनाह मिली और यही वजह है कि पाकिस्तान पर आतंकवादियों को सुरक्षा देने का विश्व पटल पर आरोप लगता रहा है जिससे वह कभी मुक्त नहीं हो पाया है । 

आज का सच

अफगानिस्तान के जो हालात आज दिखाई दे रहे हैं उनकी रूपरेखा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तैयार की थी । उन्होंने न सिर्फ यहां से अपनी फौज को बाहर निकालने की घोषणा की थी बल्कि तालिबान के साथ समझौता भी किया था । समझौते के मुताबिक अमेरिकी सेना को १४ महीने में अफगानिस्तान छोड़ना था । इसके अलावा उसे अलकायदा जैसे संगठनों को पनाह देना खत्म करना था । इस बीच तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के बीच जंग खत्म करने के लिए बातचीत होनी थी जिसका ठोस परिणाम नहीं निकल सका । तालिबान आतंकियों से संपर्क खत्म करने का वादा भी नहीं निभा सका ।  उनके इस समझौते को आगे बढ़ाने का काम मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन ने किया है । उन्होंने अपनी सरकार बनने के बाद इस बात की घोषणा कर दी थी कि सितंबर २०२१ तक अमेरिका और नाटो सेनाएं अफगानिस्तान से वापस चली आएंगी । अब अमेरिकी सेना के देश छोड़ने के साथ ही तालिबान की क्रुरता अपने चरम पर पहुंचने लगी है । पत्रकारों, ऐक्टिविस्ट्स, अधिकारियों को टार्गेट करके मारा जा रहा है । डर और त्रास की जो तसवीरें सामने आ रही हैं वह सचमुच इंसानियत को शर्मशार कर रही हैं । लोग खाली हाथ अफगानिस्तान छोड़ रहे हैं और अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं । 

विश्व की सोच और तालिबान

अब सवाल यह है कि विश्व पटल पर तालिबान को कैसे देखा जाए ? इस पर अब पूरी दुनिया में बहस शुरु हो चुकी है । अमेरिका पहले ही तालिबान को आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है । पश्चिम के अन्य देशों ने भी यही माना हुआ है । भारत ने भी इसका समर्थन किया है । आज भले ही अमेरिका तालिबान को आतंकवादी संस्था मान रहा है किन्तु इसी अमेरिका ने तालिबान को वैधता प्रदान की थी जिससे भारत खुश नहीं हुआ था ।  हालांकि सवाल यह उठता है कि क्या २० साल बाद सत्ता में आया तालिबान पहले की तरह शरिया कानून के आधार पर राज करेगा या वह मानवाधिकारों, महिलाओं के अधिकारों, लोकतंत्र और सभ्य राजनीतिक व्यवस्था के आधार पर शासन करेगा ? यह तो आने वाला समय बताएगा । वैसे फिलहाल तालिबानी नेता यह कहते नजर आ रहे हैं कि वो बदल चुके हैं और विश्व समुदाय से अलग–थलग शासन नहीं करेंगे ।

अगर सचमुच ऐसा होता है तो तालिबान का एक बेहतर भविष्य हो सकता है । यदि तालिबानी उदार लोकतंत्र की प्रणाली को अपनाते हंै, जैसा कि पाकिस्तान जैसे मुस्लिम देशों ने अपना रखा है तो निश्चय ही अफगानिस्तान का समय बदल सकता है । किन्तु, जिस चरमपंथी सोच ने उसकी जड़ें मजबूत की है उससे निकलना तालिबानियों के लिए आसान नहीं है । तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि अफगानिस्तान में आने वाली सरकार में महिलाओं को काम करने और पढ़ाई करने की आजादी देगी । किन्तु सार्वजनिक रूप से मृत्यु दंड देने, पत्थरों से मारने की प्रथा और हाथ–पैर काटने जैसी सजा देने पर उन्होंने कहा कि चूंकि यह एक इस्लामिक सरकार है, ऐसे में ये सब इस्लामिक कानून, धार्मिक फॉरम और कोर्ट द्वारा तय होंगे । सजा के बारे में फैसला करने का अधिकार अदालत को होगा । इसके पूर्व एक अन्य तालिबानी प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने भी इसी मुद्दे पर कहा था कि ये मामला इस्लामिक कानून से जुड़ा है । मुजाहिद ने कहा था कि यह शरियत से जुड़ा मामला है । उन्होंने कहा कि हम शरीयत के सिद्धांतों को नहीं बदल सकते हैं । ये वक्तव्य आनेवाले समय की तसवीर दिखा रही है । 

वहीं तालिबान नेताओं ने यह संकेत दिया है कि वे देश के पुनर्निर्माण के लिए चीन के साथ काम करेंगे । लेकिन क्या तालिबान नेता चीन की विस्तारवादी सोच से नावाकिफ हैं । एक ओर जहाँ अफगानिस्तान में हमेशा विदेशी ताकतों का वर्चस्व रहा और आज उसी से मुक्त होने की बात कही जा रही है ऐसे में वह चीन पर कितना भरोसा करता है यह भी देखने वाली बात होगी । पाकिस्तान के सन्दर्भ में भी तालिबान पहले ही कह चुका है कि अगर पाकिस्तान यह सोचता है कि हम उसके कहे अनुसार चलने वाले हैं तो यह उसका भ्रम है । अफगानिस्तान में तालिबान का राज आने के बाद अमेरिका, ब्रिटेन, साउथ कोरिया, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों ने अपने दूतावासों को ही बंद कर दिया है और राजनयिकों को वापस निकाल रहे हैं । वहीं ईरान, चीन, रूस, तुर्की और पाकिस्तान ने तालिबान में अब भी अपने दूतावासों में काम जारी रखा है । जो यह बताता है कि इन्होंने तालिबान की सत्ता को स्वीकार कर लिया है । चीन ने तालिबान के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जाहिर की है । चीन ने कहा है कि, ‘हम उम्मीद करते हैं कि तालिबान अपने वादे पर खरा उतरेगा और देश में खुली एवं समावेशी विचारों वाली सरकार बनाएगा ।’ ईरान, रूस और चीन की अमेरिका से कई मुद्दों पर असहमति रही है । ऐसे में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान की सत्ता को ये तीनों ही देश अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए एक अवसर के तौर पर देख रहे हैं । रूस ने तो तालिबान से पहले ही बात शुरू कर दी थी । 

भविष्य चाहे जो भी हो किन्तु आज का दृश्य भयावह है और पूरा विश्व इस परिवर्तन को देख रहा है । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद लगातार विश्व समुदाय से शरणार्थियों की सहायता के लिए आगे आने की अपील कर रहा है ।

 

एक नजर तालिबान के बढ़ते कदम पर

१४ अप्रैल २०२१ ः अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने किया ११ सितंबर से पहले अपनी सेना की वापसी का एलान । १ मई से शुरू हुई वापसी । इसके साथ ही अमेरिका ने अपने सबसे लंबे चले युद्ध को खत्म करने का एलान भी कर दिया था । 

४ मई २०२१ ः दक्षिणी हेलमंड समेत छह अन्य प्रांतों पर तालिबान ने अफगान सेना पर जबरदस्त हमला किया । 

११ मई २०२१ ः तालिबान ने काबुल के बाहरी क्षेत्र में स्थित नेरख जिले पर कब्जा किया । 

७ जून २०२१ ः सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि लड़ाई तेज हो गई है और पिछले २३ घंटे में १५० अफगानी सैनिक मारे गए हैं । देश के ३४ में से २६ प्रांतों में लड़ाई भीषण होती जा रही है । 

२२ जून २०२१ ः तालिबानी आतंकियों ने अपने गढ़ दक्षिण से इतर उत्तरी अफगानिस्तान में हमले तेज कर दिए । अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र के राजनयिक ने बताया कि तालिबानियों ने ३७० में से ५० से ज्यादा जिलों पर कब्जा जमा लिया है । 

२ जुलाई २०२१ ः अमेरिकी सेना ने बागराम एयर बेस स्थित अपने मुख्य सैन्य अड्डे को खाली कर दिया ।  काबुल के करीब स्थित इस सैन्य अड्डे के खाली करने के साथ ही अमेरिका की सीधी संलिप्तता खत्म हो गई । 

५ जुलाई २०२१ ः तालिबान ने अफगानिस्तान सरकार को अगस्त तक लिखित शांति प्रस्ताव देने की बात कही । 

२१ जुलाई २०२१ ः अमेरिका के वरिष्ठ जनरल ने बताया कि तालिबानी आतंकियों ने देश के लगभग आधे जिलों पर कब्जा कर लिया है । 

२५ जुलाई २०२१ ः अमेरिका ने आने वाले हफ्तों में अफगानिस्तान को मदद जारी रखने की प्रतिबद्धता दोहराई और कहा कि तालिबान से मुकाबले के लिए वह हवाई हमले तेज करेगा । 

२६ जुलाई २०२१ ः संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि मई व जून के दौरान करीब २,४०० नागरिक मारे गए या घायल हुए हैं । यह वर्ष २००९ के बाद उन महीनों की सबसे बड़ी संख्या है । 

६ अगस्त २०२१ ः देश के दक्षिण में स्थित जारंज पहला प्रांतीय राजधानी रहा, जिस पर तालिबानियों ने वर्षो में कब्जा जमाया । इसके बाद उत्तर में स्थित कुंदुज समेत कई प्रांतीय राजधानियों पर पर तालिबान काबिज होता चला गया । 

१३ अगस्त २०२१ ः कंधार समेत चार प्रांतीय राजधानियों पर तालिबान काबिज हो गया । हेरात पर कब्जा करते हुए तालिबान के खिलाफ लड़ने वाले प्रमुख कमांडर मुहम्मद इस्माइल खान को बंदी बना लिया गया । 

१४ अगस्त २०२१ ः तालिबान ने हल्की झड़प के बाद उत्तर के प्रमुख शहर मजार ए शरीफ व काबुल से महज ७० किमी दूर पुल ए आलम पर कब्जा जमा लिया । अमेरिका ने काबुल से अपने नागरिकों की सकुशल वापसी के लिए और सैनिक भेजे । अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि वह अगला कदम उठाने के लिए स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से बात कर रहे हैं । 

१५ अगस्त २०२१ ः बिना किसी लड़ाई के तालिबान प्रमुख शहर जलालाबाद पर कब्जा करते हुए राजधानी काबुल में प्रवेश कर गया ।



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