Wed. May 1st, 2024

प्रस्तावना
‘सपने वह नहीं होते हैं जो कि सोये में देखे जाते हैं बल्कि सपने वह होते हैं जो आपको सोने नहीं देती’ महान विचारक डाँ एपीजे अब्दुल कलाम की ये पंक्तियां शायद आज हम सब पर फिट बैठ रही हैं। मधेश के प्रति राष्ट्रीय राजनीति में जो कुछ भी चल रहा है वह वाकई हमें सोने नहीं दे रही है, क्योंकि मधेश और मधेशी जनता के लिए हमने जो सपने देखे थे वह सपना धीरे धीरे ही सही अब ओझल में पडता दिखाई दे रहा है। यह सच है कि हम सभी विभिन्न पेशें से आबद्ध हैं और यह भी सच है कि मधेश और मधेशी को हक दिलाने के लिए अपने अपने स्थान से हम सभी अलग अलग तरीके से प्रयासरत भी हैं। लेकिन अब यह फैसले की घडी आ गई है कि हम इस पर पुनर्विचार करें कि क्या हम जो अलग तरीके से प्रयास कर रहे हैं वह काफी है – उत्तर आपको स्वयं मिल जाएगा कि नहीं१ वास्तव में अब समय आ गया है कि इतिहास को ध्यान में रखते हुए मधेश और मधेशी जनता के भविष्य को सही राह पर लाने के लिए संगठित और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है।
असफल होती रणनीति
मधेश के अधिकारों को दिलाने का नाम पर कई मधेश केन्द्रित दलों ने मधेशी मोर्चा का गठन किया था। लेकिन धीरे धीरे यह बात साफ हो गई है कि मधेशी मोर्चा का निर्माण मधेश के अधिकारों को दिलाने के लिए नहीं बल्कि सिर्फसत्ता प्राप्ति के लिए ही हुआ था। पिछले कुछ महीनों से मोर्चा के नेताओं की भाषा, व्यवहार आचार विचार और उनके क्रियाकलापों को देखें तो आपको मालूम चल जाएगा कि जिन नेताओं ओ हमने अपने अधिकारों को दिलाने के लिए राजनैतिक जिम्मेवारी दी थी उसे उन नेताओं ने सत्ता के स्वार्थ में गिरवी रख दिया है। मधेश की मांग को या फिर यूं कहें कि मधेश के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए मोर्चा ने माओवादी के साथ जो चार सूत्रीय समझौता हुआ उसका उपयोग भी सिर्फसत्ता की बार्गेनिंग के लिए ही समय समय पर किया जाता है। र्ढाई करोड मधेशी जनता की भावनाओं के साथ मधेश केन्द्रित दल और उनके नेता जिस तरह से खिलवाड करते नजर आ रहे हैं उससे अब साफ हो गया है कि सत्ता की लिप्सा में व्यस्त हमारे नेता अब उस दल दल से शायद ही बाहर निकलें। संविधान सभा की चुनाव के परिणाम के बाद मधेशी दल को र्ढाई करोड मधेशी जनता ने चौथी शक्ति के रूप में चुनकर भेजा था। लेकिन व्यक्तिगत स्वार्थ और सत्ता सुख की प्राप्ति के लिए ही इस शक्ति का दुरूपयोग किया।
मधेश आन्दोलन का व्यापार
यह निश्चित है कि जिन नेताओं को हमने अपना भाग्य सौंपा था उन्हीं नेताओं ने हमारी भावनाओं के साथ जमकर खिलवाड किया है। देश में मधेश की शक्ति को स्थापित करने और सही मायने में देश में गणतंत्र लाने के लिए मधेश के जिन वीर सपूतों ने अपनी शहादत दी है यह उनका घोर अपमान है। मधेशी नेताओं के चरित्र ने शहीद मधेशी मां के दूध को गाली दिया है और उनके आंखों में आंसू भर दिए हैं। मधेशी नेताओं की व्यक्ति केन्द्रित राजनीति ने शहादत देने वाले वीर सपूतों की बहनों के राखी की लाज को भी रौंद दिया है। जिस पत्नी ने अपनी मांग की सिन्दूर को मधेश के नाम पर धो डाला और अपने पति को मधेश के अधिकारों के लिए बलि चढा दी मधेशी नेता मधेशी मंत्री और मधेशी मोर्चा ने उस शहीद विधवा के अरमानों पर भी पानी फेर दिया है।
मधेश में आक्रोश
अब समय आ गया है कि मधेश और र्ढाई करोड मधेशी जनता के अधिकार के लिए एक विचार रखने वाले लोगों को संगठित होना आवश्यक हो गया है। अब तक क्या होता आया है कि मधेशी नेता द्वारा र्ढाई करोड मधेशी जनता को सिर्फबरगलाया जाता रहा है। उन्हें संघीयता और एक मधेश एक प्रदेश का नारा तो रटा दिया गया लेकिन किसी ने यह नहीं बताया कि इससे मधेश का विकास किस तरह होगा। उनका जीवन स्तर कैसे सुधरेगा। कैसे मधेश में शिक्षा और सामाजिकता का स्तर ऊपर उठेगा। यह कभी नहीं बताया। मधेशी जनता हो या फिर कोई और दल सभी ने हमेशा ही र्ढाई करोड मधेशी जनता को अपना वोट बैंक ही माना है। अपने राजनीतिक फायदा के लिए मधेशी जनता का हमेशा ही इस्तेमाल किया है। अब मधेशी जनता में राजनीतिक गृति आ चुकी है। मधेशी जनता में इतना तो समझ आ ही गया है कि मधेश पर राजनीति करने वाले लोग उनकी भावना से खिलवाड कर रहे हैं। र्ढाई करोड मधेशी जनता को यह समझ में आने लगा है कि जिन मुद्दों को लेकर उन्होंने आन्दोलन किया था और दर्जनों मधेशी जनता को शहादत भी देनी पडी थी उस शहादत का व्यापार हो रहा है। इतना होने के बावजूद मधेशी जनता में हताशा और निराशा नहीं है बल्कि उनके मन में मधेशी राजनीतिज्ञों के प्रति आक्रोश बढ रहा है। हालांकि उनका रोष और आक्रोश मधेशी नेता और मधेशी मोर्चा को अभी दिखाई नहीं देता हो और अपने र्इद गिर्द के चन्द लोगों को वह अपना र्समर्थक समझने की भूल कर रहे हैं लेकिन जिस दिन समय आ एगा और जिस दिन एक सच्चा और इमान्दार नेतृत्व मिलेगा उनका आक्रोश इन मधेश के दलालों पर अवश्य ही फूटेगा। बस सही समय का इंतजार हो रहा है।
मधेश के प्रति चिन्ता करने वाले, मधेशी जनता का दर्द समझने वाले, मधेश के अधिकार को दिलाने के लिए नई तरह की सोच रखने वाले, और सत्ता केन्द्रित राजनीति से बाहर रहकर भी मधेश में विकास की बात करने वाले लोगों का एक समूह है जो कि अलग अलग होकर अपने अपने स्थान से मधेश में अलख जगा रहे हैं। इनमें कुछ पत्रकार, अधिकारकर्मी, नागरिक समाज, बुद्धिजीवी वर्ग, युवा और छात्र लगातार इन बातों पर मन्थन करते हुए इस निष्कर्षपर पहुंचे हैं कि र्ढाई करोड मधेशी जनता को राजनीतिक रूप से सचेत करने के लिए, मधेश के अधिकारों को हासिल करने के लिए नए तरीके अपनाने, मधेशी राजनीतिक दलों को खबरदारी करने सत्ता के चंगुल में उलझ चुके मधेशी मुद्दे को एक नई दिशा देने के लिए प्रयासरत हैं।
हो सकता है कि यह बात कुछ लोगों को समझ में नहीं आए या फिर कुछ लोगों को यह आवेश में आक्रोश में या प्रतिक्रिया स्वरूप लगे लेकिन यह वास्तव में पूरे सकारात्मक सोच के साथ शुरू किए जाने वाला अभियान है। आपको यह अवश्य लगे कि मुठ्ठी भर लोगों के द्वारा यह सब संभव नहीं है। लेकिन यकीन मानिए ‘विचारवान और उत्साही लोगों का छोटा सा समूह ही इस संसार को बदलने की कुव्वत रखता है और दुनियां में कई ऐसे उदाहरण भी मौजूद हैं।’ हम सभी को मिलकर इस अभियान में साथ देना होगा। यदि हम अपनी सोच को आज नहीं बदले तो इतिहास के पन्ने में हम कलंकित हो जाएंगे और भविष्य यानि कि हमारी आने वाली पीढी हमें कभी भी माफ नहीं करेगी। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि मधेश ने हमें क्या दिया बल्कि हमें हमेशा यह सोचनी चाहिए कि हमने मधेश को क्या दिया है। बस हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है।
‘सोच को बदलों तो सितारें बदल जाएंगे, नजर को बदलो तो नजारे बदल जाएंगे, मंजिलें पाना हो तो कस्तियां मत बदलना, दिशा को बदलोगे तो किनारे बदल जाएंगे।’
बदली हर्ुइ सोच के साथ यदि विचारवान लोगों का समूह मधेशी जनता के बीच अपनी बात को लेकर जाएंगे तो निश्चित है कि उसका असर होगा। बस हमें उन लोगों को साथ लेना है और हमें उनका साथ चाहिए जो कि भीड को अपनी सोच बदलने पर मजबूर करने की हिम्मत रखते हों। सकारात्मक सोच और नई ऊर्जा के साथ हमने यदि इसकी शुरूआत की तो सफलता हमें अवश्य मिलेगी। आज तक हमारे नेताओं ने संघीयता, सेना में प्रवेश, समावेशीकरण और एक मधेश एक प्रदेश को अधिकार के ही रूप में बताया है कि लेकिन हम बतांएंगे कि मधेश के विकास के लिए संघीयता क्यों आवश्यक है। मधेशी जनता को हम बताएंगे कि किस तरह समावेशी आने से हमारा जीवन स्तर ऊपर उठेगा और मधेशी जनता को यह बतांगे कि सेना में हमारा प्रवेश किसलिए जरूरी है। सिर्फसंख्या बल दिखाने लिए ही नहीं बल्कि अपनी और अपने मातृभूमि के प्रति हम लोगों में एक नई सोच और नई दिशा का संचार करने का प्रयास करेंगे। लेकिन इसके लिए हमें कहीं ना कहीं से शुरूआत करनी ही पडेगी। शुरू करेंगे तभी तो मधेशी जनता को भी समझ में आएगा कि हम क्या चाहते हैं और क्यों यह उनके लिए जरूरी है।
‘जो सफर इख्तियार करते हैं वही मंजिलों को पार किया करते हैं, बस एक बार चलने का हौसला तो रखिए, ऐसे मुसाफिरों का रास्ते भी इंतजार किया करते हैं।’
अब समय आ गया है कि हमें इसकी शुरूआत कर देनी चाहिए। अच्छे और आदर्श समय के लिए हम रास्तों पर ही इंतजार करते रहते हैं लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि रास्ते इंतजार करने के लिए नहीं बल्कि चलने के लिए होता है। अब हमें चलने की शुरूआत कर देनी चाहिए। मधेशी जनता के बीच जाना चाहिए।
मुद्दे
आखिर कौन कौन से मुद्दे हैं जिन को लेकर मधेशी जनता के बीच जाना इस समय की सबसे बडी आवश्यकता है। सबसे बडा मुद्दा इस समय विकास का मुद्दा है। आखिर मधेशी जनता को संघीयता, समावेशी, और नागरिकता के नारों में ही मधेशी जनता को उलझाया जा रहा है।
आज मधेशी जनता के सामने दो बडे उदाहरण हैं। एक तो बिहार और दूसरा उत्तर प्रदेश की। बिहार जिसको की कभी नेपाल के लोग हीन भावना से देखा करते थे आज विकास के प्रत्यक्ष अनुभव के बाद बिहार को लेकर हमारे मन में भी कहीं ना कहीं गर्व की भावना आती है। बिहार आज दुनियां के उन तमाम पिछडे राज्यों या देशों के लिए एक उदाहरण बन गया है। दूसरे तरफ उत्तर प्रदेश है जहां की जनता ने एक युवा चेहरे को चुना है ताकि उनका भी विकास हो सके। बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमाओं से जुडे होने के कारण मधेश की जनता को भी यह अहसास होने लगा है कि विकास होने पर ही बांकी सभी अधिकारों का भी मतलब है। जब विकास ही नहीं हो तो हम संघीयता, समावेशी और नागरिकता लेकर क्या करेंगे। इसलिए मधेश के हर मुद्दे को हमें विकास के साथ ही जोडना होगा।
मधेश में संघीयता के स्वरूप को भी विकास के साथ जोडना होगा। संघीयता हमें नाराबाजी के लिए नहीं और नाही मधेश के नाम पर स्वार्थ की राजनीति करने वाले नेताओं के भरण पोषण के लिए चाहिए बल्कि संघीयता हमें मधेश में विकास के लिए चाहिए। संघीयता होने पर ही स्थानीय निकाय मजबीत होगा और लोगों को विकास के किसी भी काम के लिए काठमाण्डू के भरोसे नहीं रहना पडेगा। विकास होगा तो शिक्षा स्तर भी सुधार होगा। शिक्षा होने पर हमें समावेशी की रट लगाने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि हम खुद ही इतने सक्षम होंगे कि हम जो चाहे वह नौकरी हासिल कर सकते हैं। संघीयता होने पर ही हमें सभी क्षेत्रों में अवसर मिलेंगे। हमारी अपनी सुरक्षाबल होंगी। हमारी अपनी स्थानीय शासन होगी। गांव गांव तक विकास के कार्याें का संजाल फैलेगा।
लोगों में विकास के प्रति जागरूकता बढाने और संघीयता के प्रति उनका नजरिया बदलने की जरूरत है। यह दावे के साथ कहा जा सकता है कि यदि इन मुद्दों को लेकर हम मधेश के बुद्धिजीवी वर्ग के पास जाएं तो निश्चित ही हमें र्समर्थन मिलेगा। मधेश में आज जो स्थिति बन गई है उसपर कई लोगों की टिप्पणी रहती है कि अब मधेश का कुछ नहीं हो सकता है। मधेशी नेता सब अपने ही स्वार्थ में है। मधेश का भला कैसे होगा। मधेश फिर से खसवादी के अधीन हो जाएगा। लेकिन हमारा मानना है कि दूध के फटने से सिर्फवे ही लोग उदास होते हैं जिन्हें रसगुल्ला नहीं बनाना आता है। हम हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढते हैं। और उसी का नतीजा है कि चारों ओर जो नकारात्मक सोच हावी हो रहा है हमारे लिए वही नई ऊर्जा का संचार कर रहा है और अपने मंजिल के प्रति हम और अधिक बुलन्द इरादों से आगे बढ रहे हैं।
रणनीति
हमें एक साथ दो तरह से आगे बढना होगा। एक तो हम मधेशी जनता को अपने लक्ष्य और उद्देश्य के बारे में बताना होगा और दूसरा हमें विरोध के मोर्चे पर भी डटकर आगे बढना होगा। एक तरफ जनता के बीच हम सकारात्मक सोच और विकास कार्याें के साथ जनता से जुडी हर्ुइ या सीधे जनता को फायदा होने वाली कामों को किया जाएगा तो दूसरी तरफ काठमाण्डू से लेकर मधेश के जिला मुख्यालयों पर मधेश के विरूद्ध होने वाले किसी भी षड्यंत्र के खिलाफ मोर्चाबन्दी करते हुए आन्दोलन भी करना होगा।
‘साख से गिर जाए वो पत्ते नहीं हैं हम, आंधियों से कह दो कि अपनी औकात में रहे’

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