Sun. Apr 28th, 2024

दैलेख के पत्रकार डेकेन्द्र थापा की हत्या की जांच को लेकर सत्ता पक्ष खासकर एकीकृत नेकपा माओवादी और विपक्षी कांग्रेस एमाले के बीच द्वंद्व की स्थिति पूरे महीने दिखाई दी थी। दलों के इस राजनीति में नेपाल पत्रकार महासंघ का एक धड भी कूद पड। मामला पत्रकार का होने के कारण पत्रकार महासंघ का इस मामले में दखल देना स्वाभाविक भी था लेकिन बीच-बीच में ऐसा लग रहा था जैसे पत्रकार महासंघ भी खास दल की आडÞ में राजनीतिक बयानबाजी में लगा हुआ है। यहाँ तक कि नेपाल पत्रकार महासंघ के इस आन्दोलन के विरुद्ध अघोषित रुप में माओवादी समर्थित क्रान्तिकारी पत्रकार महासंघ भी सडÞक में उतर आए। इस तरह इस मुद्दे ने पत्रकार के दो धडÞों के बीच भी द्वन्द्व पैदा हुआ।



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डेकेन्द्र की लाश पर राजनीति

सरकार और एकीकृत माओवादी का कहना था कि चूंकि यह घटना द्वंद्वकाल से जुडÞी हर्ुइ है, इसलिए इसकी जांच सत्य निरूपण तथा मेल मिलाप आयोग के जरिये किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार ने यह दलील दी थी कि उसकी तरफ से सत्य निरूपण तथा मेलमिलाप आयोग गठन को लेकर अध्यादेश पारित कर राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया है।
लेकिन विपक्षी दल और पत्रकार महासंघ का यह कहना है कि चूकि यह घटना पत्रकार को जिन्दे गाडÞकर उसकी निर्मम हत्या करने की है इसमें शामिल दोषियों ने अपना गुनाह भी कबूल कर लिया है। इसलिए इस मामले को वर्तमान कानूनी तरीके से ही निबटारा किया जाना चाहिए। पुलिस ने डेकेन्द्र थापा की हत्या में शामिल रहे ९ में से पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर उन सबके खिलाफ अदालत में मुकदमा भी दायर कर दिया है। इसी को आधार बनाकर विपक्षी पार्टियां और पत्रकार महासंघ दोषियों को सजा दिए जाने की मांग कर रही हैं। लेकिन सरकार का नेतृत्व कर रही माओवादी ने अपने कार्यकर्ताओं को इस काण्ड में जानबूझ कर फंसाए जाने और द्वंद्व काल की घटना को इस समय उठाकर देश को अस्थिर करने का आरोप लगाया है।
यह मामला ऐसे समय उठाया गया, जब विपक्षी कांग्रेस और एमाले सत्ता का नेतृत्व पाने के लिए सरकार के खिलाफ आन्दोलन कर रही है। इसी आन्दोलन के क्रम में डेकेन्द्र की हत्या के मामले को पूरे नियोजित तरीके से जोर-शोर से उठाया गया। अचानक ही यह मामला राष्ट्रीय अखबारों की सर्ूर्खियां बनने लगा। प्रधानमंत्री के खिलाफ मीडिया में खूब गालियां दी गई। इसी बीच खबर यह आई कि प्रधानमंत्री ने डेकेन्द्र थापा की हत्या की जांच को रोकने और पकडे गए अभियुक्तों का बयान रोकने के लिए निर्देशन दिया। इसके अगले ही दिन मीडिया में महान्यायाधिवक्ता के द्वारा पुलिस मुख्यालय को डेकेन्द थापा की हत्या की जांच सत्य निरूपण तथा मेलमिलाप आयोग के द्वारा किए जाने की बात कहते हुए विस्तृत शान्ति समझौते का हवाला दिया है।
लेकिन प्रधानमंत्री और महान्यायाधिवक्ता के बारे में इस तरह की खबर को र्सार्वजनिक करने के बाद इसे अदालत में भी चुनौती दी गई और अदालत ने इसे अदालत की अवहेलना की बात कहते हुए प्रधानमंत्री और महान्यायाधिवक्ता को सम्मन जारी कर स्वयं अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया। दोनों ही अपनी बात पर कायम रहे और अदालत में प्रधानमंत्री और महान्यायाधिवक्ता ने वही जबाब दिया, जो वो लगातार कहते आ रहे थे। इतना ही प्रधानमंत्री ने तो यहां तक कह दिया कि अदालत को भी शान्ति समझौते का ख्याल रखते हुए ऐसे संवेदनशील विषयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
इसी बीच दैलेख पहुंचे माओवादी नेताओं पर कांग्रेस-एमाले के कार्यकर्ताओं ने पथराव किया। माओवादी के जिला अधिवेशन के दौरान खूब हंगामा किया। मंच पर भी पत्थर फेंके। प्रधानमंत्री के विरोध का यह सिलसिला पूरे देशभर में चलता रहा। जहां जहां प्रधानमंत्री जाते इस प्रकरण को लेकर विपक्षी दल उन्हें काला झण्डा दिखाते, उनकी गाडियों पर पथराव करते, उनके खिलाफ नाराबाजी करते दिखे। अब तक यह लग रहा था कि यह विरोध माओवादी का हो रहा है। यह विरोध सरकार का हो रहा है। लेकिन आर्श्चर्य की बात यह है कि एक दिन माओवादी के जिला अधिवेशन में पाल्पा में प्रधानमंत्री किसी कारण से नहीं पहुंचे सिर्फप्रचण्ड वहां उपस्थित हुए तो उस दिन विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं ने बन्द भी वापस ले लिया काला झण्डा भी नहीं दिखाया विरोध में नारे भी नहीं लगाए बल्कि माओवादी के कार्यकर्ता की तरह बैठकर भाषण भी सुना। प्रचण्ड ने भी उनकी जमकर तारीफ की।
इससे साफ हो गया कि विरोधी कार्यकर्ताओं और कुछ पत्रकारों का उद्देश्य एकीकृत माओवादी का विरोध करना नहीं था। और ना ही डेकेन्द्र थापा की हत्या को लेकर माओवादी को कोसने का था। उनका विरोध का एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री को पद से हटने के लिए मजबूर करना था। उनका निशाना सिर्फप्रधानमंत्री बाबूराम भट्टर्राई हैं। जिसे हटाने के लिए कांग्रेस एमाले आन्दोलन कर रही है। डेकेन्द्र थापा की हत्या को तो महज बहाना बनाया गया था। ऐसी कई बाते हैं जिसके कारण पत्रकार महासंघ से लेकर इस मामले को जरूरत से ज्यादा उठाने वाले देश के कुछ तथाकथित राष्ट्रीय मीडीया किसी ना किसी के इशारे पर यह सब काम कर रहे हैं ताकि डेकेन्द्र थापा के बहाने ही देश में द्वंद्व को बढाया जा सके।
आखिर वो कौन लोग हैं, जो यह चाहते हैं कि वृहत शान्ति समझौता भंग हो जाए। आखिर वह कौन लोग हैं जो देश में एक बार फिर से दलों के बीच खाई बढÞाकर अशान्ति फैलाना चाह रहे हैं। आखिर किसके इशारे पर देश में द्वंद्व को बढावा दिया जा रहा है। कौन है जिसका उद्देश्य नेपाल में संविधान सभा चुनाव नहीं कराने का है –
इन सभी सवालों का जबाब लोग अपनी-अपनी तरह से दे सकते हैं। राजनीतिक दल और नागरिक समाज अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन एक बात तो तय है कि इसमें कुछ इस तरह की अदृश्य शक्तियां काम कर रही हैं, जो राजनीतिक दल, मीडिया, नेपाल पत्रकार महासंघ को प्रयोग कर रही है, अपने अभीष्ट को पूरा करने के लिए। नेपाल में आए राजनीतिक परिवर्तन गणतंत्र, संघीयता आदि को नहीं देख पाने वाली बाहरी ताकतें भी इसमें सक्रिय है। और कुछ जाने अनजाने और कुछ डाँलर के लालच में और कुछ अपने मतलब के लिए डेकेन्द्र की लाश पर राजनीति कर देश को अस्थिर बनाने पर तुले हुए हैं।



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