राष्ट्रवाद, देशप्रेम, वंशवाद और मानवता : अजय कुमार झा
अजय कुमार झा
आज कोरोना महामारी को लेकर किए गए लॉकडाउन के क्रम मे आम नागरिकों के आग्रह पर दूरदर्शन पर दशकों पुराना अति लोकप्रिय रामायण और महाभारत सीरियल प्रसारण किया गया। अनेकों चैनेल इसे प्रसारण कर रहे हैं। आज हम उसी खादानों में से कुछ मोतियाँ आपके समक्ष रखने जा रहे हैं। इसका मूल उद्देश्य आज के समय में दिखाई पड़ रहे उग्रराष्ट्रवाद, वंशवाद, देशप्रेम और मानवता है।
सबसे पहले हमें राष्ट्रवाद क्या है ? इसपर छलफल करना चाहिए!
राष्ट्रवाद:-
राष्ट्रवाद एक स्वार्थी और महत्वाकांक्षी अवधारणा है जो सत्ताधारी के प्रति निष्ठा और राष्ट्र की सीमा के विस्तार की उग्र आकांक्षा से ओतप्रोत होता है। राष्ट्रवादी राजभक्त होता है। उसको यह फर्क ही नहीं पड़ता कि सत्ता पर कौन विराजमान है. सिंहासन और पद के लिए निष्ठा और अपने राष्ट्र का विस्तार और शत्रु राष्ट्र की बर्बादी ही राजभक्त की मौलिक अभिलाषा होती है। यह एक आत्मघाती महत्वाकांक्षा है, जो अभीष्ट प्राप्ति के लिए अपनी और अपनों के जीवन की परवाह नहीं करती। राष्ट्रवादी के लिए राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है और उसकी सुख-सुविधा और इच्छापूर्ति प्रजा का कर्तव्य। राष्ट्रवाद , मानवीय मूल्यों और आदर्शों से कोसों दूर होता है।
रावण ने राक्षस संस्कृति के स्थापना हेतु साम्राज्यवादी अहंकार पूर्ति के क्रम में अपने लाखों सैनिकों को बलिदान चढ़ा दिया। सीता हरण को राष्ट्रवाद का चोला पहनकर राम के साथ युद्ध में सगौरव अपने वंश सहित लंका को सर्वनाश कर दिया। वही महाभारत में
भीष्म पितामह सिंहासन और राजा के लिए निर्दोष सिपाहियों, पौत्र-प्रपौत्रों को गाजर मूली की तरह कटवा दिया। इसी तरह राजपुत्र दुर्योधन की कुटिल और अनैतिक प्रतिशोधपूर्ति के लिए पुत्रवधू के सामूहिक चीरहरण को मौन समर्थन देकर आदर्श राष्ट्रवादी का परिचय दिया। जिसे हम आज भी सम्मान और अपमान के दृष्टि से देखते हैं।
ऐसे ही मुगलकाल में भी राष्ट्रवादी के रुप में मानसिंह अपना परिचय देते हुए अपने भाई भतीजों को काट देते हैं। अकबर हज़ारों लाशों के ऊपर साम्राज्य विस्तार करता है। नेपाल में पृथ्वी नारायण शाह के द्वारा हिंसात्मक एकीकरण अभियान के नामपर हजारों नेपाली युवाओं को बलि चढ़ाना और रणबहादुर शाह और शेरबहादुर शाह के मृत्यु षडयंत्रपूर्ण उग्रराष्ट्रवाद का ही द्योतक था।
राजतन्त्र में राजभक्ति ही आदर्श मानी जाती थी। वहाँ मानवता को प्राथमिकता देना भीष्म जैसे ज्ञानी और शूरवीरों के भी बस का नहीं था तो आज किसमे होगा!
देशप्रेम:-
देशप्रेम एक विशुद्ध भावनात्मक और मानवतावादी भावना है, जिसका सीधा सम्बन्ध जनजीवन के विकास से है। देशभक्ति अपनी मातृभूमि से लगाव है। उस स्थान के लिए प्यार और आराधना जहां किसी व्यक्ति का जन्म होता है और उसका पालन पोषण होता है।
जब हमें अपने गाँव की मिट्टी और पेड़ पौधों को देख कर आंखों में जब चमक और शरीर में ताजगी आ जाये, दूसरे देश में अपने मुल्क के लोगों को देख कर दिल खुश हो जाये।,जब बहुत सारे लोग मिल कर अपने देश का गुण गान करें और उस वक्त शरीर में शरशराहट और खूशी से दिल बहुत तेज़ धड़कने लगे, अपने देश के भाई- बहनों चाहे वो कोई भी मजहब से ताल्लुक रखते हो उनसे मुहब्बत और सबका सम्मान सच्चा देशप्रेम का प्रमाण है।
टैक्स चोरी न कर समय पर टैक्स भरना, समाज की कुप्रथाओं का विरोध व बढ़ावा न देना, पूरी निष्ठां और इमानदारी से काम करना देशभक्ति है, सरकारी कार्यालय में घुस न लेना व देना, बेरोजगार को सही दिशा व सलाह देना, झूठी खबरों को फैलने से रोकने व खंडन करना, किसी पार्टी विशेष की भक्ति न करना, तथा
अपने धर्म, संस्कृति व इतिहास का संरक्षण और संबर्धन करना देशभक्ति है।
रामायण काल में हम विभीषण को देशप्रेमी का संज्ञा देङ्गे, जबकि उसे देशद्रोही कहा गया है। वहीँ महाभारत काल में बिदुर को देशप्रेमी माना जाएगा। वर्त्तमान भारत में योगी आदित्यनाथ देशप्रेमी हैं तो नेपाल में सिर्फ बाबुराम भट्टराई को देशप्रेमी माना जाएगा। आजादी के लड़ाई में अग्र पंक्ति में रहने वाले देशप्रेमी ही होते हैं। आन्दोलनकारी जब सफल हो जाते हैं, और सत्ताशीन होते तब वो भी देशप्रेमी न रहकर अधिकतर नेता और पार्टी उग्रराष्ट्रवाद के नामपर अपनी सत्ताको बचाने में लग जाते हैं। नेपाल में वि पी कोइराला, रामनारायण मिश्रा, गणेशमान शिंह, कृष्ण प्रसाद भट्टराई ए लोग वास्तवमे देसप्रेमी थें और अंत तक रहे भी। इधर महात्मा गांधी देशप्रेमी थे तो वही नाथूराम भी देशप्रेमी ही थें। राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, सावरकर, गोपाल कृष्ण गोखले, विवेकानंदलगायत के सभी संत देशभक्त थें। आज के समयमे राजीब भाई दीक्षित, स्वामी रामदेव भी देशभक्त ही हैं। इस प्रकार देखा जाय तो, देशभक्ति वह विहंगम भाव है जिसमे वहाँ के भूमि, नागरिक, पशु-पक्षी, प्राकृतिक-सौन्दर्य, धर्म-संस्कृति और जीवमात्र के कल्याण तथा विकास का उच्च भाव तथा सम्मान सम्मिलित रहता है। इसमे सामूहिक भावनाओं को केंद्र में रखा जाता है। जबकि राष्ट्रवाद एक आँधी की तरह कुछ समय के सक्रीय होता है और फिर लुप्त हो जाता है। इसमे खासकर व्यक्ति या पार्टी के निहित महत्वाकांक्षा, उद्देश्य अथवा किसी घटना विशेष को प्रज्ज्वलित करने के लिए उग्र सक्रियता दिखाई जाती है और उद्देश्य पूरा हो जानेपर शान्त हो जाता है। फिर यह चर्चा से भी बाहर हो जाता है। यह भी हो सकता है कि सत्ता परिवर्तन के संग संग वह राष्ट्रवाद अराजक और देशद्रोही सिद्ध कर दिया जाय।
अब हम पौराणिक काल से वर्त्तमान युगतक सत्तामे कुंडली मारे बैठे वंशवाद पर प्रकाश डालना चाहता हूँ।
राजनीति में वंशवाद का प्रभाव को पुरातन काल से आज तक हम देख सकतें हैं। कुछेक अपवादों को छोड़कर राजाओं के पुत्र ही राजा और सम्राटों के पुत्र ही सम्राट हुए हैं। खून का महत्व योग्यता से अधिक रहा है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि उत्तराधिकारी अयोग्य होने के बावजूद भी जनता उसी अयोग्य वंशज को ताज पहनते देखना चाहती है। और यह पिछड़े देशों में ही नहीं सर्वाधिक पढ़े लिखे देश इंग्लैंड और यूरोप के देश हैं जहां अधिकांश देशों में आज भी ऐसा राजतन्त्र है जहां सम्राट या सम्राज्ञी राष्ट्र का सर्वोच्च अधिपति होता है। यहां तक कि शाही परिवार के सदस्यों की बेहूदगी ने कई बार राष्ट्रों को शर्मिंदा किया है, इसके बावजूद शाही परिवार के सदस्यों के प्रति आम नागरिकों की अटूट निष्ठा देखा जाता है।
अमेरिका के वर्तमान परिदृश्य में देखे तो जॉर्ज बुश (सीनियर) सन् 1989 से सन् 1993 अमेरिका के राष्ट्रपति रहे। उनके दो पुत्र थे। बड़ा बेटा जॉर्ज बुश (जूनियर) सन् 2001 से सन् 2009 तक राष्ट्रपति रहे। वहीं छोटा बेटा जेब बुश फ्लोरिडा प्रान्त का गवर्नर था। अब यही जेब बुश याने जॉर्ज बुश सीनियर का दूसरा बेटा और जॉर्ज बुश जूनियर का भाई अमेरिका में होने वाले अगले राष्ट्रपति चुनावों में उम्मीदवार बनने की दौड़ में शामिल है।
दूसरी तरफ पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन दूसरे दल की ओर से इस दौड़ में शामिल मानी जाती हैं। ऐसा नहीं है कि अमेरिका में प्रतिभाशाली नेताओं की कमी है पर जनता की गुलामी मानसिकता की वजह से राजनीतिक संगठन मज़बूर है इन स्थापित राजघरानों से उम्मीदवार चुनने के लिए। एक सर्वेक्षण के अनुसार चालीस प्रतिशत तक यह सम्भावना होती है कि अमेरिका के सांसद की सीट खाली होने पर उसी के परिवार का कोई सदस्य उसकी जगह लेगा। मतलब साफ़ है, अमेरिका जैसे विकसित प्रजातंत्र में भी जनता परिवारवाद के जाल से बाहर निकलने को तैयार नहीं। नेपाल भारत के बारे में तो चर्चा करना ही फालतू लगता है। यहाँ तो लोग लोकतंत्र में ही अपने लुटते हुए महसूस कर रहे हैं। यहाँ लोकतांत्रिक वंशवाद का संगठन संसार का किसीभी खतरनाक संगठन से आगे है। कालनेमी वंशवाद के दंश से उबरने के लिए भारत आजतक छटपटा रहा है। इन्हें मुक्तिदाता में शत्रु और सर्वश्व लुटेरा में देवत्व दिखाई देता है। शकुनियो के आगे विदुर पानिपस्त होने लगा है। इस हालात से मुक्ति हेतु मनोवैज्ञानिकों को आगे बढ़कर मनुष्य के दास मनोविज्ञान पर अनुसन्धान हेतु सक्रियता दिखाना चाहिए।
ध्यान रहे:- योग्यता को उत्तराधिकार न मिलने से कई विशाल साम्राज्य ध्वस्त हो गए और इतिहास के पन्नों में खो गए। महाभारत सर्वसुलभ और सर्वोत्तम उदाहरण है। यही से मानवता वाद का पाठ शुरु होता है। मानववाद और मानवतावाद के भेदको स्पष्ट समझना चाहिए। मानववादी ईश्वर विहीन है, मानवतावादी ईश्वर विचार के साथ चलते हैं जो अदृश्य है। अदृश्य बातों को प्रेम करना हमेशा आसान होता है। मानवता को प्रेम करना आसान है मानव को प्रेम करने से। एक अकेला मानव अधिक खतरनाक है सारी मानवता से। जहाँ मानव व्यक्ति के रूप में शत्रु और मित्र हो सकता है, दुखी और सुखी हो सकता है, वही मानवता एक भावनात्मक सम्प्रेषण मात्र है, जिसे भौतिक रूपसे नहीं पकड़ा जा सकता। हम लोगों के मुख से सुनते आए हैं कि अभी तुम पूर्ण मानव नहीं हुए हो। महात्मा गांधी मानवतावादी थे। मगर गहरे में उनका मानवतावाद हिंदू-धर्म का पर्यायवाची था। यूं तो कहते थे कि कुरान में भी वही है, गीता में भी वही है। मगर गीता को अपनी माता कहते थे। कुरान को अपना पिता नहीं कहा! एसे ही महान दार्शनिक मार्टिन बुबर के भीतर यहूदी मानवतावाद था। बुद्ध, महावीर, ओशो, जीसस ए महापुरुष पूर्णतः मानवतावादी थें। आज फिरसे इस धरती पर मानवता को संरक्षित आर सम्बर्धित करने के लिए इन महान आत्माओं की आवश्यकता है। हमें मानवतावाद के सुक्ष्मता को जानना चाहिए। जी! हमें इसी बिंदु पर विशेष ध्यान देना चाहिए। राजकीय सत्ता हम किसके हाथ में सौप रहे है! यह व्यक्ति और मानवता के लिए बहुत महत्व रखता है। जीबन और मृत्यु दोनों हम उसके हाथों में अर्पण कर रहें हैं। वह व्यक्ति हिटलर, चंगेज खां, किम ज़ोंग उन और इदिअमिन भी हो सकता है। हमारी थोड़ी सी चूक पूरे मानवजाति के लिए अभिशाप सिद्ध हो सकता है।
धन्यवाद!
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