चुनाव का भूत ! : व्यग्ं बिम्मी कालिन्दी शर्मा (व्यंग्य)
चुनावी दंगल,
व्यग्ंय: बिम्मी कालिन्दी शर्मा, वीरगंज,
चुनाव सर पर है, सब को चुनाव का बुखार चढा ही नहीं लगा भी है । जैसे भूत लग जाता है या होली में रंग या गूलाल लगा कर सराबोर होते है वैसे ही चुनाव के रंग में सराबोर है । जैसे भांग और शराब लगती है वैसे ही कार्यकर्ता, हनुमान और चमचों को चुनाव लगा है । वह क्या बडबडा रहे हैं खुद उन्हें भी नहीं मालूम बस सब को दशहरा दिवाली की तरह चुनाव लगा हे । अब यह चुनाव कंहा पर किस तरह लगा है नहीं कह सकते । और ईस कोई हवा देने का काम कर रहे हैं विभिन्न राजनीतिक पार्टी, ईसके नेता और उम्मीदवार । खैर मीडिया तो बाल का खाल और रबड को खिंचने के लिए साथ में है ही ।
मुझे सब से ज्यादा ताज्जुब, खुशी और आश्चर्य ईस बात पर होती है कोई उम्मीदवार हारने की बात नहीं करता । सब अपनी जीत पर ऐसे निश्चित है जैसे कोई दुसरा उम्मीदवार मैदान में है ही नहीं । बस ‘वान वे’ का ढोल पीट रहे हैं की मैं ही जितुंगा । वैलेट बक्स घर में ही रखा हो और वोट गीन कर बता रहे हैं की मै ही जितुंगा । साईबेरियन बर्ड जैसे दूर से उड कर आए उम्मीदवार जिसकी जमिनी.पकड कुछ भी नहीं है वह भी जितने का ऐसा सुरिला राग अलाप रहा है कि ह्रदय का तान ही छेड देता है । ऐसा आत्मविश्वास विद्यार्थियों में नहीं दिखाई देता पर ईन उम्मिदवारों में आत्मविश्वास का भंडार है । वह कहते हैं न ज्यादा आत्मविश्वास ले डुबता है । ईनके साथ भी यही होगा कोई चुनाव की वैतरणी पार करेगा और बांकी सब उथले पानी में डूब जाएंगें ।
कंही गलत पार्टी से सही व्यक्ति उम्मीदवार है तो कहीं सही पार्टी से गलत उम्मीदवार चुनाव में खडे हैं । मतदाता दिग्भ्रमित हैं कि किसको वोट दें ओर किस को नहीं । मतदाता को तो मन कर रहा है की सब को वोट दें दें । आखिर वोट मांगने भी तो सभी दरवाजे पर आए ही थे । अब द्वार पर आए याचक को निराश हो कर लौटाना भी नहीं चाहिए । ईसी लिए जो जो आए वोट मांगने सब को वोट दे दो देश जाए भांड में । विभिन्न राजनीतिक दलों में आस्था के चलते घरों में खटपट हो रहा है । अडोसी-पडोसी दुश्मन बन गए हैं । रिश्तेदारों की भृकुटि तनी हूई है लगता है तिसरा बिश्व युद्ध हो ही जाएगा । सब को अपनी राजनीतिक आस्था और अपना नेता प्यारा और आदर्श है । सब की अपनी डफली अपना राग में सम्बन्ध बेसुरा हो रहा है तो भी कोई बात नहीं । यह चुनावी दंगल है यहां सब मंगल ही मंगल है ।
कोई अपनी बेटी को जिताने के लिए अपने जीवन भर की राजनीति को ही दांव मे लगा कर धम्कि दे रहा है कि अगर उनके गठबंधन और उनकी बेटी को न जिताया गया तो देश में कोई दुर्घटना होगी । देश वैसे भी पहले से ही दुर्घटनाग्रस्त है । ईस गठबंधन की नायिका और सब की भाभी भी कमर मटकाते हुए कह रही है की उनके गठबंधन दल और उनके उम्मीदवार को वोट नहीं देगा तो जिला और नगर में जाने वाले विकास बजेट को ही रोक देगीं । गोया देश के राजकोष को ही वह अपने पर्स पर ले कर घुमती है जैसे । और गाली शिरोमणि के तो कहना ही क्या बेचारे ईतने शुद्ध और पवित्र हैं कि किसी नेता विशेष के नाम उच्चारण करने पर भी कूल्ला कर लेते हैं । ईतना ही नहीं झूट के शिरोमणि यह भी कहतै हैं कि उनके विचारों को समझने वाला कोई भी ईस देश में नहीं है । मुझे तो आश्चर्य लगा यह जान कर की उनके पास विचार भीं है ? विचार के नाम पर उलजलूल मुहावरों को दूसरों पर पान की पीक कि तरह थुकना ही ईन का प्रिय शगल है ।
और देश के प्रधानमंत्री भी कह रहे हैं ईस गठबंधन के खिलाफ कोई भी बोलेगा तो ठीक नहीं होगा । सब के सब धम्कि की भाषा बोल रहे हैं । यह नेता हैं कि गुंडा फर्क करना मुश्किल हो रहा है ।
और ईस देश के जनता जनार्दन का तो कहना ही क्या ? जब से चुनाव की तारिख तय हूई है तब से ऐसे फुदक रही है गिलहरी पेड पर क्या फुदकती होगी । बेचारे बेरोजगार थे चुनाव के बहाने मुंह और हाथ को रोजगार मील गया है । रात में पिने को ठर्रा और दिन में चबाने को गोश्त । और क्या चाहिए बेरोजगारों को ? सब कोरोना को भी भूला चूके हैं पिछले साल ईन्ही महिनों में क्या हुआ था यह भी याद नही । सब चुनावी दंगल में एक दुसरे को धोबी पछाड देने के लिए लंगोटी कस रहे हैं । और पिछे से कार्यकर्ता, हनुमान और चमचे अपने मन पसंद नेता या रहनुमाओं को ताली बजा- बजा कर धाप दे रहे हैं और जोड से कह रहे हैं कि ‘जितेगा भई जितेगा अपना नेता जितेगा’ ! ?