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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन: -डॉ श्वेता दीप्ति

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डॉ श्वेता दीप्ति, सम्पादकीय, हिमालिनीअक्टूबर २०२३ अंक। इजराइल और हमास के युद्ध का बड़ा खामियाजा नेपाल को भुगतना पड़ा है । या यूँ कहूँ कि यह पीड़ा उन परिवारों, उन माता–पिता को भुगतना पड़ रहा है, जिनकी आँखों की रोशनी, जीने का सहारा, इस युद्ध ने क्षणभर में छीन लिया है । कोई मुआवजा इनका आसरा नहीं लौटा सकता, कोई सहानुभूति इनके सहारे को नहीं लौटा सकती । इस विडम्बना को यह देश सदियों से झेल रहा है । देश से युवाओं का पलायन नेपाल के लिए कोई बड़ी बातया नयी बात नहीं है । यह तो यहाँ के घर–घर की कहानी और देश की कुव्यवस्था का उदाहरण है । एक ऐसा देश जो कई मायनों में समर्थ है, जो अपने युवाओं के लिए देश में रोजगार की व्यवस्था कर सकता है, किन्तु अकर्मण्य हाथों में फसा यह देश सचमुच ‘सती द्वारा शापित देश’ है ।

कृप्या इसे अवश्य सुनें

हर रोज त्रिभुवन अन्तरराष्ट्रीय विमान स्थल पर युवाओं की भीड़, उनकी भीगी आँखों से विदा होने का दृश्य, मन को विचलित करता है । एक अच्छे भविष्य की तलाश में अपनी मिट्टी को छोड़कर जाना इनकी बाध्यता बन गई है । जीना है तो कुछ करना है, अपने सपनों को साकार करने, परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के लिए ये बच्चे जाते हैं और अक्सर अपने बीमार शरीर के साथ वापस आते हैं । इजराइल और हमास के युद्ध में दस नेपाली छात्रों की मौत की खबर ने देश के आम जन को विचलित कर दिया है । कुछ सकुशल वापस आ गए हैं । कई अब भी वहाँ फसे हुए हैं । यह तात्कालिक परिस्थिति हो सकती है किन्तु नेपाली नागरिकों की विदेशी जमीन पर मौत कोई नई बात नहीं है । अकाल मृत्यु के ग्रास बने इनके शव महीनों घर वापसी का इंतजार करते हैं और फिर महीनों बाद अभिभावकों की पथराई आँखे उनका अंतिम दर्शन करते हैं ।

काश ! सरकार देश में वह वातावरण तैयार करे कि, हमारी युवा पीढ़ी अपनी क्षमता, अपनी उर्जा का योगदान अपनी मिट्टी के लिए कर सके । न देश में अन्य देशों के लिए निवेश का माहोल है, न ही उद्योग धंधे हैं, न ही व्यापार है । सबसे बड़ी बात कि सरकार के पास कोई सक्षम और दूरगामी नीति नहीं है कि वो युवा पलायन को रोक सकें । इस छोटे और सुन्दर देश में पर्यटन की अपार संभावना है, खनिज, जड़ी–बुटी से समृद्ध यहाँ की धरती है, असंख्य नदियों की स्थली है, फिर भी देश लाचार है, जनता निरीह है । कंठ तक भ्रष्टाचार से आबद्ध शासन प्रणाली, विभिन्न भ्रष्टाचारों से लिप्त हमारे प्रतिनिधि और उन्हें झेलने के लिए विवश जनता, आखिर करे क्या ? अपने बच्चों को भीगी आँखों से बाहर भेजना और अपने बुढ़ापे को किसी तंग, तन्हा कमरे में गुजारना यही यहाँ की नियति है ।

फिर भी इंसान का मन ईश्वर ने उस धैर्य और उम्मीद से भरा है कि, वह जीना नहीं छोड़ता । उसे जीना होता है, उसी एक उम्मीद की किरण के सहारे कि ‘एक दिन सब अच्छा होगा’ । इसी उम्मीद को जिन्दा रखते हुए आश्विन और कार्तिक के इस पावन मास में हिमालिनी के सभी सुधी पाठक, विज्ञापन दाता, शुभेच्छुओं को शारदीय नवरात्रि, दीपावली और लोक आस्था का महापर्व छठ की अशेष, अनंत शुभकामनाएँ ।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिन:

सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।



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