चुनौतियों से परिपूर्ण समृद्ध नेपाल का सपना : अंशु झा
हिमालिनी अंक जुन २०१९ | नेपाल प्राचीन काल से ही सभ्यता, संस्कृति और शौर्य की दृष्टि से बडा गौरवपूर्ण रहा है । प्रतापी तथा शौर्यवान राजा जनक का देश, मां जनक नन्दिनी सीता की भूमि, भृकुटी जैसी त्यागी बेटी का जन्मस्थल, शांति के संवाहक बुद्ध का यह नेपाल जो विश्व के समक्ष एक उदाहरण के रूप में जाना जाता है । प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक संपदाओं से परिपूर्ण यह नेपाल सगरमाथा के उच्चशिखर के कारण विश्व में एक अलग पहचान दिलाती है । उसी प्रकार नेपाल को कभी शांत देश के नाम से भी अभिहित किया गया था । नेपाल की सुन्दरता तथा शांति के कारण लोग यहां से बहुत प्रभावित होते थे । अर्थात् जहां शांति वहीं समृद्धि और वहीं सुख । परन्तु अभी का नेपाल बहुत ही बेहाल है । वह अपना अस्तित्व ढूंढ रहा है । अस्तित्व ढूंढने के क्रम में दर बदर की ठोकरे खा रहा है ।
वर्तमान सरकार का नारा है ः समृद्ध नेपाल, सुखी नेपाली । नारा तो सही में बहुत ही सुन्दर है, परन्तु यह सम्भव है क्या ? क्योंकि समृद्धि का अर्थ तो बहुत ही व्यापक है ( संपन्नता, ऐश्वर्य, अमीरी इत्यादि । अर्थात् जिसके पास सब कुछ है, जो सारी सुख सुविधाओं से परिपूर्ण है वही समृद्ध हो सकता है । परन्तु यहां तो ऐसी बात नहीं है । जी हां समृद्धि की परिभाषा आपको यहां की किताब में अवश्य मिल सकती है । पर सही मायने समृद्धि यहां से विलुप्त हो चुकी है । यहां के प्रत्येक नागरिक गरीबी रेखा के नीचे ही है । जो कुर्सी पर बैठा है वह तो पूर्ण रूप से गरीब है, गरीब तो गरीब ही है ।
सही में नेपाल समृद्ध था कभी । एसिया के दो बडे देश भारत और चीन के बीच हिमालय के गोद में बसा नेपाल का इतिहास अन्य देशों की अपेक्षा अलग है । नेपाल के दक्षिण तरफ के अन्य देश जब परतंत्र थे उस समय भी नेपाल स्वतन्त्र ही रहा । विभिन्न धर्म शास्त्र तथा पुरानों में नेपाल को अत्यन्त प्राचीन भूमि के रूप में वर्णन किया गया है । लगभग १३ करोड वर्ष पहले यहां के पर्वत श्रृंखलाओं तथा उपत्यकाओं से आकर्षित होकर प्राणियों का आवागमन होने लगा । नेपाल का उल्लेख सर्वप्रथम अथर्व परिशिष्ट में पाया जाता है जिसका निर्माण ईशापूर्व ५०० से ६०० के बीच माना गया है । इसी प्रकार विभिन्न युगों में विभिन्न नामों से नेपाल को जाना जाता रहा । सत्ययुग में सत्यवती, त्रेता में तपोवन, द्वापर में मुक्तिसोपान और कलियुग में नेपाल नाम से जाना जाता है । जो हमारे पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है ।
नेपाली इतिहास के अनुसार लगभग १५०० ईशापूर्व इन्डो आर्यन जातियों ने उपत्यका में प्रवेश किया और १००० ईशापूर्व छोटे छोटे राज्य तथा राज्य संगठन का निर्माण हुआ । ईशापूर्व ( ५६३ से ४८३ ) में शाक्य वंश का शासन काल रहा जिसके राजकुमार सिद्धार्थ गौतम थे । लिच्छवीकाल को स्वर्ण युग से सम्बोधन किया जाता है और मल्लकाल को स्वर्णकला युग के नाम से जाना जाता है । उपरोक्त बातों से स्पष्ट होता है कि अभी के नेपाल से पहले का नेपाल समृद्ध था ।
वर्तमान में नेपाल की स्थिति बहुत ही दयनीय है । चारों तरफ निराशा की कतार लगी हुयी है । जनता अपने आपको बेसहारा महसूस कर अन्ततोगत्वा आंदोलन का सहारा ले रही है । वास्तव में राष्ट्र में सरकार द्वारा इतने सारे अनर्गल कार्य हो रहा है कि जनता स्वयं को असुरक्षित महसूस करती है । जैसे कि लोकसेवा द्वारा बिना समावेशी विज्ञापन निकालना, गुठी विधेयक लाना इत्यादि । आए दिन सडक आंदोलनों से घिरा नजर आ रहा है । कभी लोकसेवा के विज्ञापन को लेकर, कभी शिक्षकों का आंदोलन, कभी डाक्टरों का आंदोलन तो गुठियारों का आंदोलन इत्यादि । वर्तमान सरकार पूर्ण बहुमत के साथ शासन सम्भाल रही है परन्तु किसी भी दृष्टिकोण से सफल नहीं दिख रही है ।
वर्तमान सरकार यह डफली बजाते हुये घूम रही है कि – लोकतन्त्र और विकास शान्ति के साथ अन्तरनिहित है । शान्ति, लोकतन्त्र और विकास एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है । बिना विकास के शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती है । इसलिये लोकतांत्रिक प्रणाली से ही अखण्ड शांति और विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकता है । शांति सिर्फ युद्ध नहीं करना ही नहीं है, एक विचार है, एक अवस्था है, समाज और राष्ट्र की एक प्रणाली भी है । ) परन्तु सरकार यह कथन कार्यान्वयन तो नहीं कर रही है । आर्थिक स्तर में लोकतन्त्र का अर्थ जनता के लिये साधन, स्रोत और चयन के अधिकार सहित सशक्तिकरण करना है । गरीबी, असमानता, पिछडापन, इत्यादि का अन्त करना है । सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्तर में लोकतन्त्र का मतलब शक्ति की गतिशीलता से संबन्धित समस्या, अपनत्व, समावेशीकरण और न्याय की भावना को विकसित करना है । पर यह सारी बातें सिद्धांत तक ही सीमित रह गया है । सत्य तो यह है कि रोजगारों को बेरोजगार बनाकर गरीबी को बढ़ाया जा रहा है । अव्यवस्थित क्रियाकलाप से देश में अराजकता फैल रही है और देश फिर से द्वन्द की ओर जाने की कगार पर है । नेपाल में लगभग तीन करोड़ जनता में असंतुष्टि फैल रही है ।
निष्कर्षतः वर्तमान सरकार को राष्ट्र में व्याप्त विभिन्न अव्यवस्थित अवस्थाओं पर ध्यान देते हुये जनता के हित के लिये कार्य करना चाहिये समानता, न्याय, रोजगारी, स्वतंत्रता और जनता के जीवन स्तर में स्पष्ट परिवर्तन दिखने जैसा उपलब्धिमूलक कार्य होना चाहिये । ताकि वर्तमान सरकार अपने स्वप्न को साकार बना सके । सही अर्थ में किस प्रकार नेपाल समृद्ध हो सके उस तरफ ध्यान केन्द्रित होना चाहिये ।