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अंगीकृत नागरिकता अधिकार या दान ? : डॉ. श्वेता दीप्ति

nepali angikrit nagriktaडॉ श्वेता दीप्ति, हिमालिनी अंक जुलाई 022।



नेपाल की राजनीति में नागरिकता सदैव से बहस का मुद्दा रही है । नियम बनते हैं और फिर किसी ना किसी दल की ओर से उसका विरोध भी जारी रहता है । विशेष कर अंगीकृत नागरिकता, कभी चुनाव के लिए इसे मुद्दा बनाया जाता है तो कभी विपक्ष की ओर से चर्चित होने के लिए इसे मुद्दा बनाया जाता है । एक बार फिर से नागरिकता विधेयक चर्चा में है । आइए एक नजर डालें अंगीकृत नागरिकता के इतिहास पर ।

नेपाल में वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता कानून का इतिहास

१० असार २००९ साल में नेपाल में पहली बार नेपाली नागरिकता ऐन, २००९ जारी किया गया था । इस ऐन के दफा ३ में वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान रखा गया था जिसमें कहा गया था कि, ‘नेपाल राज्य के कानून और रीति के अनुसार नेपाली नागरिक के साथ किसी भी प्रकार के वैवाहिक सम्बन्ध होने पर पत्नी नेपाली नागरिक होगी ।’ इस नागरिकता ऐन में तथा नेपाली नागरिकता ऐन, २००९ के नियम में नागरिकता को जन्मस्थान, वंशज तथा अंगीकृत कर के विभाजन नहीं किया गया था । इसलिए अंगीकृत नागरिक सम्बोधन नहीं दिया गया था । नेपाली पुरुष के साथ विवाह होने पर विदेशी महिला को नागरिकता प्रदान करने के लिए किसी भी प्रकार की शर्त अथवा समय निर्धारित नहीं किया गया था ।

इसके बाद २०१५ साल में नेपाल अधिराज्य का संविधान जारी किया गया । नेपाल सरकार वैधानिक कानून, २००४; नेपाल अन्तरिम शासन विधान, २००७ की तरह ही इस संविधान में भी नागरिकता सम्बन्धी कोई भी प्रावधान समावेश नहीं था ।

२०१९ साल में नेपाल का संविधान जारी किया गया । संविधान के धारा ७ (ग) में वैवाहिक नागरिकता सम्बन्धी प्रावधान रखा गया । जिसमें कहा गया था कि, ‘नेपाल के कानून और रीत के अनुसार नेपाल के नागरिक के साथ किसी भी प्रकार के वैवाहिक सम्बन्ध वाली महिला को नेपाली नागरिक माना जाएगा ।’ इस संविधान में भी नागरिकता को किसी भी वर्ग में बाँटा नहीं गया था । न ही नेपाली नागरिक के साथ विवाह होने वाली विदेशी महिला के लिए नागरिकता प्राप्त करने के लिए किसी समय या शर्त का ही उल्लेख था । नेपाल के संविधान, २०१९ जारी होने के एक वर्ष बाद २० मंसिर २०२० में नेपाली नागरिकता अध्यादेश, २०२० जारी किया गया । इस अध्यादेश के दफा ६ में अंगीकृत नेपाली नागरिकता प्राप्त होने वाले शीर्षक के अन्तर्गत ही वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता प्राप्त करने के प्रावधान को भी समावेश किया गया ।
अध्यादेश में स्थायी वास करने वाले और वैवाहिक अंगीकृत को एक ही श्रेणी में रखा गया । जिसके अनुसार अंगीकृत नागरिकता प्राप्त करने के लिए नेपाल की राष्ट्रभाषा लिखना और बोलना जानने वाले, अपना जीवन निर्वाह करने साधन तथा योग्यता वाले नेपाल में कोई व्यवसाय करने वाले, आदि शर्त था । अंगीकृत नागरिकता प्राप्त करने के लिए दो वर्ष और १२ वर्ष ये दो प्रावधान थे । नेपाली नागरिक के साथ विवाह होने वाली महिला के लिए नागरिकता प्रदान करने के लिए किसी समय का निर्धारण आदि बातें स्पष्ट नहीं थी ।

नेपाल के संविधान, २०१९ में दूसरा संशोधन २६ मंसिर २०३२ में किया गया । इस संशोधन में वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता प्राप्त करने के लिए समयावधि निर्धारण किया गया । इस सम्बन्ध में कहा गया है कि, ‘नेपाली नागरिक के साथ वैवाहिक सम्बन्ध वाली विदेशी महिला के हक में कम से कम पाँच वर्ष नागरिकता के लिए रुकना होगा ।’ नेपाल के संविधान के दूसरे संशोधन ने वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता पाने के लिए पाँच वर्ष इंतजार करने की व्यवस्था स्पष्ट उल्लेखित किया गया । इससे पहले के कानून में विवाह होने के साथ ही नेपाल का वैवाहिक नागरिकता पाने की व्यवस्था थी । इसके बाद १० असोज २०३३ में नेपाल नागरिकता ऐन, २०२० में दूसरा संशोधन कर वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता पाने की अवधि को संविधान बमोजिम पाँच वर्ष कायम किया गया ।

२० वैशाख २०३७ में हुए जनमत संग्रह के बाद पूस १ गते नेपाल के संविधान में तीसरा संशोधन किया गया । इस संशोधन से वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता पाने के लिए पाँच वर्ष तक इंतजार करने की समयावधि को हटा दिया गया । संविधान के संशोधित धारा में कहा गया कि, ‘नेपाली नागरिक के साथ वैवाहिक सम्बन्ध वाली विदेशी महिला के लिए पाँच वर्ष की अवधि की जगह विदेशी नागरिकता त्याग करने के बाद दिया जाएगा । इस तरह पाँच वर्ष की अवधि हटा दी गई । २०४६ साल के जनआन्दोलन के बाद नेपाल के संविधान, २०१९ को खारिज कर २३ कात्तिक २०४७ में नेपाल अधिराज्य का संविधान, २०४७ जारी किया गया । इस संविधान में भी वैवाहिक नागरिकता के सम्बन्ध में पूर्ववर्ती संविधान के प्रावधान को ही निरन्तरता दी गई ।

इसी तरह २०६२÷६३ के बाद राजनीतिक परिवर्तन होने पर १० मंसिर २०६३ में नेपाल नागरिकता ऐन, २०२० खारिज कर नेपाल नागरिकता ऐन, २०६३ जारी किया गया । इस ऐन के दफा ५ के अनुसार विवाह पश्चात विदेशी महिला को नेपाल की नागरिकता प्राप्त करने के लिए आबद्ध अधिकारी के समक्ष निर्धारित ढाँचा में निवेदन देना होगा । साथ ही विदेशी नागरिकता त्याग का प्रमाणपत्र भी पेश करना होगा । नेपाल नागरिकता ऐन, २०६३ के प्रावधान को ही नेपाल के अन्तरिम संविधान, २०६३ में निरन्तरता दी गई ।

वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता

नेपाल की राजनीति में नागरिकता को लेकर हमेशा तरंग उठती रहती है । खास कर अंगीकृत नागरिकता को लेकर । ये मुद्दा मधेशी दल और नेताओं का भी प्रिय मुद्दा रहा है । हालाँकि परिणाम अक्सर ढाक के तीन पात ही रहता आया है । हाँ यह वोट की राजनीति को हवा जरुर देता है । यह कटु सत्य है कि तराई क्षेत्र में भारत की बेटियाँ ब्याही जाती रही हैं । जो नेपाल भारत सम्बन्धों की परिभाषा भी बनती रही है । ऐसा कोई नेता नहीं होगा जो इन दोनों देशों के रिश्तों को परिभाषित करते हुए यह नहीं कहता है कि भारत के साथ ‘रोटी–बेटी का सम्बन्ध’ है । किन्तु भारत की बेटियाँ यहाँ आकर अक्सर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है ।

यह उनके लिए मानसिक तनाव का कारण भी बनती है । उनकी शिक्षा, भाषा सभी मजाक बन कर रह जाया करती है । यह अंगीकृत नागरिकता उन्हें हमेशा तीसरे दर्जे का नागरिक बनाती है । मजाक तो यह है कि वैवाहिक नागरिकता को सात साल के बाद भी अंगीकृत नागरिकता से सम्बोधित करते हुए उसके मान–मर्यादा का मजाक ही बनाया जाता है । यही वजह है कि हाल के दिनों में अब वैवाहिक सम्बन्ध का अनुपात बहुत कम हो गया है ।

नेपाल में वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता विगत से बहस का विषय बनता रहा है । सात साल की अग्नि परीक्षा के बाद भी उसे तीसरे दर्जे का नागरिक ही माना जाएगा । क्योंकि नेपाल में मधेशी दोयम दर्जे के नागरिक हैं तो इस स्थिति में उनके घर भारत से आई बहुएँ इस अंगीकृत के बाद स्वतः तीसरे दर्जे पर आ जाती है । शायद यही वजह है कि अब भारत नेपाल का सम्बन्ध रोटी–बेटी का नहीं बल्कि रोजी–रोटी का हो गया है । जहाँ तक भारत से इतर किसी अन्य देश की बहुओं का सवाल है तो, उनसे शादियाँ ही इसलिए की जाती है कि यहाँ के बेटे को विदेश में ग्रीन कार्ड मिल जाए और वो विदेश का सुख आसानी से ले सकें । क्योंकि देश की अवस्था ऐसी है कि जो युवा विदेश चले जाते हैं वो वापस नहीं आते हैं क्योंकि, उन्हें अपनी मिट्टी में कहीं कोई आकर्षण नहीं दिखता है । गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी कौन झेलना चाहेगा भला ? यह सब सुनने या पढ़ने में कड़वा अवश्य लगता है किन्तु, इस सच्चाई को हम नकार नहीं सकते ।

अंगीकृत नागरिकता का दंश सबसे अधिक भारत से आई बेटियों को ही चुभता है । इसी दिशा में नेपाल के संविधान (२०७२) जारी होने के बाद नागरिकता ऐन को संविधान अनुकूल बनाने के उद्देश्य से २०७५ सावन में नेपाल नागरिकता ऐन, २०६३ को संशोधन प्रतिनिधिसभा में विधेयक पंजीकृत किया गया । इस विधेयक के दफा ४ (२) में वैवाहिक अंगीकृत नागरिकता प्राप्त की हुई महिला को ६ महीने के भीतर विदेश की नागरिकता परित्याग किया गया प्रमाण पेश करने का प्रावधान रखा गया ।

इस विधेयक पर प्रतिनिधि सभा के राज्य व्यवस्था तथा सुशासन समिति में दो वर्ष चर्चा के बाद परिमार्जन कर प्रतिनिधिसभा में वापस भेज दिया गया । इस परिमार्जित विधेयक के दफा ४ (१) में कहा गया कि नेपाली नागरिक के साथ विवाह करने वाली महिला को नेपाल में स्थायी तौर पर सात साल वास करने के बाद अंगीकृत नागरिकता दिया जाएगा । प्रतिनिधिसभा में ३ वर्ष ११ महीना से विचाराधीन इस विधेयक को सरकार विपक्ष के विरोध के बीच असार २४ गते वापस ले चुकी है । ४ वर्ष से विचाराधीन नागरिकता विधेयक को वापस लेने के बाद सरकार ने उसी दिन दूसरा विधेयक पेश किया ।

सरकार द्वारा वापस लिए गए बिल में प्रावधान किया गया है कि नेपाली पुरुषों से शादी करने वाली विदेशी महिलाएं शादी के तुरंत बाद नागरिकता प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन अगर उन्होंने ६ महीने के भीतर विदेशी नागरिकता या कोई राष्ट्रीय पहचान पत्र हासिल कर लिया है, तो उन्हें नागरिकता त्याग का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा । .

लेकिन विधेयक के राज्य व्यवस्था और सुशासन समिति के पास पहुंचने के बाद, चर्चा अलग तरह से आगे बढ़ी । राज्य व्यवस्था समिति ने ७ साल बाद ही विवाह द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के प्रावधान को बहुमत से पारित करने के बाद विधेयक की रिपोर्ट संसद में पारित की । तत्कालीन नेकपा (वर्तमान में एमाले, माओवादी केन्द्र और एकीकृत समाजवादी पार्टी) के सांसदों ने नेपाल और दो बड़े पड़ोसी देशों की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए शादी के ७ साल बाद नागरिकता देने की वकालत की ।

पड़ोसी देश भारत में भी, चूंकि शादी के बाद लगातार ७ साल तक रहने के बाद ही नागरिकता प्राप्त करने का प्रावधान है, इसलिए तर्क दिया कि नेपाल में भी इसी तरह की व्यवस्था करना उचित होगा । इस तर्क के आधार पर, राज्य कानून समिति ने नागरिकता विधेयक की रिपोर्ट को बहुमत से पारित किया, जिसमें विवाह के वैधीकरण के लिए ७ साल का प्रावधान था । लेकिन नेपाली कांग्रेस के साथ–साथ जसपा और लोसपा के सांसदों के अलग–अलग विचारों के कारण सरकार ने बिल को आगे नहीं बढ़ाया गया ।
अब शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली सरकार ने संसद में लंबित नागरिकता विधेयक को वापस ले लिया और एक नया विधेयक पेश किया है । नागरिकता अधिनियम –२०६३ की धारा ५ में अंगीकृत नागरिकता से संबंधित प्रावधानों में कोई संशोधन प्रस्तावित नहीं किया गया है । बेशक, अगर यह संशोधन संसद द्वारा पारित किया जाता है, तो नेपाली नागरिकों से शादी करने वाली विदेशी महिलाओं को तुरंत स्वीकृत नागरिकता मिल जाएगी । अंगीकृत के मसले में ही नहीं बल्कि अन्य मामलों में भी, इस संशोधन ने राज्य व्यवस्था समिति द्वारा किए गए संशोधन को स्वीकार नहीं किया है ।

किसी भी देश के लिए नागरिकता का मामला अत्यन्त संवेदनशील माना जाता है । इसलिए सरकार से यह अपेक्षा अवश्य रहती है कि वह कोई भी निर्णय देश हित में ले । किसी देश में व्यवसायिक कारण से या किसी अन्य कारण से कोई स्थायी रूप में रहना चाहता है तो निश्चय ही उसे नागरिकता प्रदान करने के लिए नियम कड़े होने चाहिए लेकिन जहाँ तक नेपाल भारत सम्बन्ध के परिदृश्य की बात है तो इस सम्बन्ध में भारत सरकार के पहल की भी आवश्यकता महसूस होती है । भारत ने नागरिकता संशोधन बिल २०१९ के तहत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू, जैन, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाई जो ३१ दिसंबर २०१४ से पहले भारत आए हैं, उन्हें नागरिकता देने का प्रावधान किया है क्योंकि भारत का यह मानना है कि इन ६ अल्पसंख्यक समाज के लोगों ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में बुरे भेदभाव और धार्मिक अत्याचार को झेला है ।

इन लोगों के पास भारत के अलावा किसी दूसरे जगह जाने का विकल्प नहीं है । यह बिल पश्चिमी बॉर्डर या पाकिस्तान के जरिये देश में आये प्रवासियों को राहत देगा । मौजूदा नागरिकता बिल प्रवासियों को नागरिकता के लिये अप्लाई करने के लिये योग्य बनाएगा. प्रस्तावित नियमों के मुताबिक, राज्य सरकार और जिला प्रशासन की जांच और सिफारिश के बाद ही नागरिकता प्रदान की जाएगी । वहीं इस नागरिकता संशोधन बिल के जरिए अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को वैध रूप से भारतीय नागरिकता दी जाएगी । इन बातों की चर्चा यहाँ इस लिए की गई कि, अगर भारत यह कहता है कि नेपाल उसके लिए ‘विशेष’ स्थान रखता है तो उसे भी नेपाल के सम्बन्धों को नजर में रख कर अपने नागरिकता सम्बन्धी नियमों को परिभाषित करना चाहिए । ताकि भारत से आई हुई बेटियाँ या नेपाल से भारत गई हुई बेटियाँ अपने आत्मसम्मान को जिन्दा रख सके और उसके परिप्रेक्ष्य में यहाँ भी निर्णय लिए जा सकें । नेपाल भारत की खुली सीमा भी यह बताती है कि इन दोनों देशों का रिश्ता अन्य पड़ोसी देशों से बिल्कुल अलग है । ऐसे में भारत से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह इन बातों को ध्यान में रखकर कोई प्रावधान लाए । नागरिकता का सवाल देश की सुरक्षा से भी जुड़ा होता है । वर्तमान में एक बार फिर से नागरिक विधेयक सरगर्मी में है । इसलिए यह आशा करें कि सरकार देश हित को सामने रखकर ही कोई निर्णय लेगी ।

(यह आलेख प्रकाशित होने के बाद ही नेपाल के संसद ने नागरिकता विधेयक पारित कर दिया है जिसमें अंगीकृत नागरिकता सम्बन्धित पुरानी व्यवस्था को कायम रखा गया है। धन्यवाद नेपाल सरकार और इसके पक्ष में मत देनेवाले सभी सांसदों को ) सम्पादक



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