रामलीला मंचन की अनूठी परंपरा
जब 17 वर्षीय राम ने लोहे से बना शिव धनुष तोड़ दिया!,
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
यूं तो पितृ पक्ष से ही श्रीराम लीला मंचन की शुरूआत हो जाती है,लेकिन नवरात्र शुरू होते ही रामलीला भी पीक पर होती है,यानि जिधर देखो वही श्रीराम लीला का मंचन।हर रामलीला में अलग अलग संदर्भों का मंचन, कही श्रीराम का जन्म,तो कही कैकई का कोपभवन,कही दशरथ मृत्यु तो कही श्री राम भरत मिलाप,हर रामलीला के कलाकार अपने अपने ढंग से रामचरित मानस की चौपाइयों को गाकर भगवान राम के काल को अपनी मंचन कला से प्रदर्शित करते है।लेकिन बढ़ते डिजिटल युग के कारण अब रामलीला भी हाई टेक हो गई है ,कई जगहों पर परंपरागत रामलीला मंचन के बजाए फिल्मी पर्दे पर डिजिटल रामलीला दिखाई जाने लगी है।लेकिन परम्परागत रामलीलाओं की बात ही अलग है।रामलीला से जुड़ा एक किस्सा याद आ रहा है,यह घटना सन 1880 की है,उत्तर प्रदेश के बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव गई थी। मण्डली में 22-24 कलाकार थे, जो गांव के एक ही आदमी के यहाँ रुके थे। वहीं सभी कलाकार रामलीला की रिहर्सल करते और खाना स्वयं बनाकर खाते थे।पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे और हारमोनियम बजाकर मंच संचालन करते थे, जबकि फौजदार शर्मा नामक कलाकार साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे।एक दिन पूरी रामलीला कलाकार मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रहा था ,तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा इस बार वह शिव धनुष हल्की और नरम लकड़ी का बनवाएं ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 वर्षीय कलाकार को धनुष तोड़ने में परेशानी न हो। पिछली बार धनुष तोड़ने में काफी समय लग गया था।
इस बात पर फौजदार नाराज़ हो गए, क्योंकि रामलीला की साज सज्जा और अन्य व्यवस्था फौजदार ही देखते थे और पिछला शिवधनुष भी उन्होंने ही बनवाया था।इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में आपसी कहा सुनी हो गई थी।फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज हो गया और पंडित जी से बदला लेने को सोचने लगा।संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर का मंचन था और शिव धनुष टूटने का भी मंचन होना था।फौजदार रामलीला मण्डली जिसके घर रुकी थी, उनके घर गया और कहा रामलीला में लोहे की एक छड़ की जरूरत आन पड़ी है, दे दीजिए। गृहस्वामी ने उसे एक बडी और मोटी लोहे की छड़ दे दी।छड़ लेके फौजदार दूसरे गांव के लोहार के पास गया और उसे धनुष के आकार की बनवा लाया। रास्ते मे उसने धनुष पर कपड़ा लपेट कर और रंगीन कागज से सजा के गांव के एक आदमी के घर रख दिया।
रात में रामलीला शुरू हुई तो फौजदार ने चुपके धनुष बदल दिया और लोहे वाला धनुष ले जा कर मंच के आगे रख दिया और खुद पर्दे के पीछे जाकर तमाशा देखने के लिए खड़ा हो गया।रामलीला शुरू हुई , पण्डित जी हारमोनियम पर राम चरणों मे भाव विभोर होकर रामचरित मानस के दोहे का पाठ कर रहे थे। हजारों की संख्या में दर्शक शिव धनुष भंग देखने के लिए मूर्तिवत बैठे थे। रामलीला धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी, सारे राजाओं के बाद राम जी गुरु से आज्ञा लेकर धनुष के पास आए, उन्होंने जब धनुष हो हाथ लगाया तो धनुष उससे उठी ही नही।राम का किरदार निभा रहे कलाकार को सत्यता का आभास हो गया गया। उस 17 वर्षीय कलाकार ने पंडित कृपाराम दूबे की तरफ देखा तो पण्डित जी समझ गए कि दाल में कुछ काला है।उन्होंने सोचा कि आज इज्जत चली जायेगी हजारों लोगों के सामने और ये कलाकार की नहीं स्वयं प्रभु राम की इज्जत दांव पर लगने वाली है।पंडित जी ने कलाकार को आंखों से रुकने और धनुष की प्रदक्षिणा करने का संकेत किया और स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में समर्पित करते हुए आंखे बंद करके उंगलियां हारमोनियम पर रख दी और राम जी की स्तुति करनी शुरू कर दी…. ।
जिन लोगों ने ये लीला अपनी आँखों से देखी थी बाद में उन्होंने बताया कि जैसे ही पंडित जी ने आंख बंद करके हारमोनियम पर हाथ रखा , हारमोनियम से उसी पल दिव्य सुर निकलने लगे।ऐसा अदभुत गायन करते हुए किसी ने पंडित जी को पहले कभी नहीं देखा था,सारे दर्शक मूर्तिवत हो गए, नगाडे से निकलने वाली परम्परागत आवाज भीषण दुंदभी में बदल गयी,पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी बढ़ने लगी आसमान में बिन बादल बिजली कौंधने लगी और पूरा पंडाल अदभुत आकाशीय प्रकाश से रह रहकर के प्रकाशमान हो रहा था,दर्शकों की कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है ।पण्डित जी खुद को राम के चरणों मे आत्मार्पित कर चुके थे। उन्होंने चौपाई गाई
‘लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥’
पण्डित जी के चौपाई गाते ही आसमान में बिजली कड़की और मंच पर रखे लोहे के शिव धनुष को राम का किरदार निभा रहे कलाकार ने दो भागों में तोड़ दिया..।लोग बताते हैं कि ये सब कैसे हुआ और कब हुआ? किसी ने कुछ नही देखा, सब एक पल में हो गया..।धनुष टूटने के बाद सब कुछ अगले ही पल सामान्य हो गयी ।पण्डित जी मंच के बीच गए और टूटे धनुष और कलाकार के सन्मुख दण्डवत हो गए। लोग शिव धनुष भंग पर जय श्री राम का उद्घोष कर रहे थे और पण्डित जी की आंखों से श्रद्धा के आँसू बह रहे थे।किसी ने सच कहा है,मन मे श्रद्धा हो तो बड़े से बड़ा काम सहज ही हो जाता है।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
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