काला झंडा दिखाना देशद्रोह कैसे हो गया ? : श्वेता दीप्ति
नीति और नीयत पर सवाल
हिमालिनी, अंक सितंबर,२०१८, सम्पादकीय
प्रहरी हिरासत में राममनोहर यादव की संदिग्ध मौत ने एक बार फिर नेपाल की नीति और प्रहरी की नीयत पर सवालिया निशान लगा दिया है । क्या सचमुच नेपाल लोकतंत्र की खुली हवा में साँस ले रहा है ? कैसा लोकतंत्र और किसके लिए लोकतंत्र ? जनता जहाँ अपना विरोध न जता सके, जहाँ वह अपने ही चुने हुए प्रतिनिधियों की साजिश का शिकार हो कर अपनी जान गँवा दे क्या यही लोकतंत्र है ? काला झंडा दिखाना देशद्रोह कैसे हो गया ? क्या यह इतना संगीन आरोप है कि हिरासत में उसे सख्त यातनाओं का शिकार होकर अपनी जान देनी पड़ जाय ? ये सवाल कई बार सरकार और प्रहरी पर उठते रहे हैं । किन्तु इसका न तो जनता को कभी जवाब मिला है और न ही सरकार इन सवालों के प्रति कभी गम्भीर रही है । एक मौत ही तो हुई है, रोज लोग मरते हैं उसमें एक और जान शामिल हो गई । निर्मला की मौत के साथ ही तरंगित कंचनपुर ने एक और मौत के दर्द को झेला, कई अब भी घायल हैं किन्तु सरकार चुप है । क्या प्रहरी इतनी निरंकुश हो गई है कि उन्हें गोली चलाने में कोई हिचक नहीं होती ? भीड़ को तितर बितर कैसे किया जाय क्या उन्हें इसका प्रशिक्षण नहीं दिया गया है ? नेताओं की रुह जनता के लिए न तो कभी काँपी है और न कभी काँपेगी यह यहाँ का इतिहास बताता है ।
सरकार ने बिमस्टेक सम्मेलन का आयोजन सफलतापूर्वक करा लिया । नेपाल के हित में यह कितना असरदार रहेगा यह तो भविष्य बताएगा । वैसे इस कार्य के लिए भी सरकार की आलोचना की गई जिसे एकबार फिर राष्ट्रवाद के साए में ही देखा जा सकता है । जहाँ यह समझा जा रहा है कि प्रधानमंत्री ओली ने बिमस्टेक में दिलचस्पी भारत के दवाब में लिया है । वैसे आम जनता अपने प्रधानमंत्री की खयाली बातों और सपनों से बाहर निकलने लगी है । विकास की धार, कर की मार में कहीं दब कर कराह रही है । सरकार के पास कोई स्पष्ट नीति नहीं दिख रही है । देश की स्थिति तो यह है कि जयनगरसे जनकपुर के लिए पटरी तैयार है किन्तु रेल के डब्बे नदारद हैं । डब्बे खरीदे जाएँ या भाड़े पर लिए जाएँ सरकार तय नहीं कर पा रही है । वैसे स्रोत का मानना है कि फिलहाल डब्बे खरीदने की स्थिति में देश नहीं है । ऐसे में केरुंग से काठमान्डौ तक का रेल का सपना कैसे पूरा होगा यह सवाल दिल में बैचेनी जरूर उत्पन्न कर रहा है । फिलहाल तो सत्ता के सपने पूरे हो रहे हैं और जनता उसे देख कर आनन्दित । खुदा खैर करे ।